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________________ 5 10 २९६ वड्डमाणचरिउ वितर-पेय-पिसायवइ णं खय-कालहो दूआ ॥छ। रुहिरामिस वस मंडिय गत्तई सभिउडि-भाल-विहीसण वत्तइं । णीसेसु वि णयलु छायंत. डव-डवंत डमरु व वायंतई। फरहरंति पिंगल सिर चूलई करयलि संचारंत तिसूलई। उग्गामिय लसंत करवालई णर-कवाल कंकाल करालई । गयवर वम्मावरणु धरंत. णिभरहुं हुंकारु करतई। करिकत्तिय किरणालि फुरंतई वंधु-वंधु वंधुच्चारंतई। हणु हणु हणु भणंत धावंत, दारुण दिढ़-दाढई दावंतई। भीमोत्तलिहिंमुअणु भरंत. जिणणाहहो पयपुरउ सरंतह । णिय-णिय मुअ जुअ सत्ति पयासेवि । माया-विरइय-रूबई दरिसेवि । णिप्फंदई होएविणु थक्कई । दूरुज्झवि झावई लल्लक्कई । अकयत्थई वियलिय गुरु गवई भत्तिएण वियाणणई व सव्वई। पास-जिणेसर तव भय-गीढई जा दिट्ठई सेविय महिवीढई । घत्ता-ता कमठासुरु भासुर वयणु णिद्दरियारुण दारुण णयणु । तणु जइ विच्छुरिय विउल गयणु अहरोवरि विणिबेसिय रयणु ॥ -पास.७।१५ 15 श्री, ही, धृति आदि देवियों द्वारा वामा माताको विविध सेवाएँ समप्पइ कावि दुरेह खाल । सुअंध-पसूण विणिम्मिय माल । विलेवणु लेविणु कावि करेण पुरस्सर थक्कइ भत्ति-भरेण । पलोडइ कावि विमुक्क कसाय सरोरुह सण्णिह णिम्मल पाय । कवोलयले कवि चित्तु लिहेइ कहाणउ सुंदरु कावि कहेइ । समारइ कावि सिरे अलयालि करेइ वरं तिलयं कवि भालि । पदंसइ दप्पणु कावि पहिट्ठ रसड् टु पणच्चइ कावि महिट्ठ। मणोजउ गायउ गीउ रसालु णिरंतर णिब्भर रक्खइ वालु । पढावइ कावि सपंजर कीरु विइण्णउ कावि सुसंचइ चीरु । महोदय-मंदिर दारु सरेवि परिट्रिय कावि सदंड धरेवि । महाजल-वाहिणि सत्थजलेण सुही कवि व्हावइ धत्थ मलेण । पयंपइ कावि महा-विणएण विराइय विग्गह लत्थि णएण । कुबेरु मणीहिं पवुट्टउ ताम छमास परिंदहो पंगणि जाम । घत्ता-सुह-सेज परिट्ठिय अइ उक्कंठिय णयण-सोहणिज्जिय णलिण । सोवंति सुरह पिय हयसेणहो पिय सुइणइ पिच्छ गलिय मलिण ।। -पास.१६१८ 10 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001718
Book TitleVaddhmanchariu
Original Sutra AuthorVibuha Sirihar
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Religion
File Size9 MB
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