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परिशिष्ट-१ (क)
२९५ णाही गंभीरत्तणु मणोज
इयरह कह जण मणि जणइं चोज्जु । पत्तलु वि पोट्ट पयडिय गो णोहु इयरह कह सुर-णर फणि मणोहु । मुणिहु विमण बलहरु तिवलिभंगु इयरह कह अइ वग्गइ अणंगु । तुंगत्तु होउ थोरत्थणाहँ
इयरह कह सिरचालणु जणाहँ । भुव जुउ मण्णमि पंच-सर पासु इयरह कह बद्धउ जण सहासु। रेहाहि पवरु कंधरु विहाइ
इयरह कह कंबु रसंतु ठाइ । मुह-कमलु पदरिसिय राय-रंगु इयरह कह छण ससहर सवंगु । बिंबा-सरिसाहरु हरिय चक्खु इयरह कह मोहिउ दह-सयक्खु । दिय-सोह धरंति सुदित्तियाइँ इयरह पियाइ कह मोत्तियाई। मयरद्धय धणु भू-विब्भमिल्ल इयरह कह रइ समख रसिल्ल । घत्ता-जुत्तउ ललियंगिहि णिरु णिव्वंगिहि अइ दीहत्तणु लोयणहं।
इयरह कह दारहिं जण-मणु-भारहि कामिय मयणुक्कोवणहं ।।-पास. १॥१३॥
• अनुप्रासात्मक एवं ध्वन्यात्मक पदावलियाँ णव-पाउस-घणोव्व उच्छरियउ छायंतउ णहंगणं ।
णिसियाणण विसाल वखाणहिँ कीलिर सुरवरंगणं ॥ चूरइ लूरइ रह-धयवडाइँ
फाडइ पाडइं गुड-मुह-वडाइँ। दावइ णच्चावइ रिउ-घडाई धावइ पावइ उन्भड़-भडाई। कोकइ रोक्का कड्ढेवि किवाणु पञ्चारइ मारइ मुएवि वाणु । हक्का थक्कइ रिउ पुरउ झत्ति
णिहणइ विहुणइ तोलइ ससत्ति वंचइ संचइ सर-चामराई
पोसइ तोसइ खयरामराई। आसंघई लंघइ गयवराई
दारइ संहारइ हयवराई। उद्दालइ लालइ पहरणाई
धीरहँ वीरहँ दप्पहरणाई। वग्गइ मग्गइ संगरु रउद्दु
डोहइ खोहइ णरवर समुदु । पेल्लइ मेल्लइ ण किवाण-लट्ठि
गज्जइ जज्जइ दरिसइ णरट्टि । अवहेरइ पेरइ भीरु सूर
पासइ संसासइ वाण कूर ॥-पास. ४।१४ खडहडियई देउल-धवलहरइँ झलझलियई तीरिणि-मयरहरई। वणकरिवरहिं विमुक्कई दाणई रुलुघुलियइँ सूवर संताणई। किलि-किलियई साहामय णियरई थरहरियई पट्टण पुर-णयरई॥-पास.८।२।६-८
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पार्श्वनाथ पर व्यन्तरों पिशाचों आदि द्वारा किये गये विविध उपसर्ग
वस्तु ता सुरेसेण भीमवयणेण
थिरय वियणिय लोयणिणा। कुविय मणि वेयाल झाइय
दिरिसंत माया विविह तहि । असेस तक्खणे पराइय डाइणि रक्खस-पण्णय-गरुड-गह-साइणि भूआ।
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