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वड्डमाणचरिउ
जटाधारी तपस्वियोंका वर्णन तहिं दिट्ठ कोवि हुअवहु हुणंतु कलवापि कोवि पंचमु झुणंतु । पंचग्गि कोवि-णिञ्चल-मणेण । साहंतु परिजय सक्खणेण । जड-जूड-मउड मंडियउ को वि घंअद्वि-परिट्ठिय-देहु को वि। वक्कल-कोवीणु करंतु कोवि
उलंत उच्छारेण को वि। जड़-वप्पण-विहि विरयंतु को वि हर-सिरि-गडुअ ढालंतु को वि । कणय-पसूणहिं पुज्जंतु को वि
गुरुयर-भत्तिए णच्चंतु को वि । हा-हाइ सदु विरयंतु को वि कतरियालंकिय पाणि को वि । विरयंतउ सिक्क-समूहु को वि
कर-धरेय-सत्थु चिंतंतु को वि। केयार-पुराणु पढंतु को वि। तिणयणहो पयाहिण दितु को वि । थिर-लोयणु संभासंतु को वि
॥-पास.-६८।१-१०
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काशी देशका वर्णन आयण्णहो णिरु थिरु मणु धरेवि जण कय कोलाहलु परिहरेवि । इह जंबूदीवए सुह-णिवास
सुरसेलहो दाहिण-भरहवासे । णिवसइ कासी णामेण देसु
सक्कइ ण जासु गुण गणण सेसु । जहि धवलंगउ गाविउ चरंति मेल्लिविण णवतण धण्णइँ चरंति । पेक्खेवि सुरसत्थु सरई विसाल खीरंभोणिहि कल्लोल माल । जहि सहइ पक्क गंधट् टु सालि साहार पवर मंजरि वसालि। जहिं पीडिजहिं पुंडेच्छु दंड
मुअबल-बल बंडई करवि खंड । तरुणियणाहर इव रस कएण विरइय थिर-लोयण जलवएण। जहि सरि णलिणीदलि हंसु भाइ णीलमणि पंति ठिउ संखु णाइ । कुट्टणि वसहहिं जहिं सरि बहुत्त कुडिलगइ सरस रयणणिहि-रत्त । उत्तुंग-सिहर जहि जिणहराई णावइ घरणारिहे थणहराई। दाणोल्लिय-कर वण करि व जेत्थु णायर-णर किं वण्णियइ तेत्थु । घत्ता-तहिं तिहुअण-सारी जणहु पियारी णयरी वाणारसि वसइ।। बुहयणहँ पसंसिय परहिअ फंसिय जण-मण-हारिणि णाई सई ।।-पास. ११११
नख-शिख वर्णन अइ रूव जाहे वण्णइ ण को वि णियमइ विलासु दक्खवमि तो वि । रत्तत्तणु दरिसिउ कमयले हिं
इयरह कह सरु भारइ सरेहि । गुप्फहि विष्फारिउ गूढ भाउ इयरह कहमण झदुव अलंघ । जाणुअ संदरिसिय णिविड बंध इयरह कह णिवडहिँ जण मयंध । सुललिय पवरोरु रइ सुसार - इयरह कह कयलीयल असार । कडियल पिहुलत्तणु अइ-अउव्वु इयरह कह जणु मेल्लइ सगव्वु । णव-णाइणि तणु सम रोम-राइ - इयरह कह मुज्झइ विवुह जाइ ।
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