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________________ परिशिष्ट-१ (क) २८५ 5 कारावेवि णाहेयहो णिकेउ पविइण्णु पंचवण्णं सुकेउ । पई पुणु पइट्ठ पविरइय जेम पासहो चरित्तु जइ पुणु वि तेम । विरयावहि ता संभवइ सोक्खु कालंतरेण पुणु कम्म-मोक्खु । सिसिरयर-विवे णिय-जणण णामु पइँ होइ चडाविउ चंद-धामु । तुज्झु वि पसरइ जय जसु रसंतु दस-दिसहि सयल असहण हसंतु। तं णिसुणिवि णट्टलु भणइ साहु सइवाली पिययम तणउँ णाहु । भणु खंड-रसायणु सुह-पयासु रुच्चइ ण कासु हय तणु पयासु । एत्थंतरि सिरिहरु वुत्तु तेण णट्टल णामेण मणोहरेण । भो तुहु महु पयडिय णेहभाउ तुहुं पर महु परियाणिय सहाउ । तुहुँ महु जस-सरसीरुह-सुभाणु तुहुँ महु भावहि णं गण-णिहाणु । पई होतएण पासहो चरित्तु आयण्णमि पयडमिह पाव-रित्तु । तं णिसुणिवि पिसुणिउँ कविवरेण अणवरउ लद्ध-सरसइ-वरेण । घत्ता-विरयमि गय गावें पविमल भावे तुह वयणे पासहो चरिउ । पर दुज्जण णियरहिं हयगुण पयरहिँ , घरु-पुरु-णयरायरु भरिउ ॥९॥ 10 १।१० तेण जि ण पयट्टइ कव्व सत्ति जं जोडमि तं तुट्टइ टसत्ति। पुणु-पुणु वि भणिउँ सो तेण वप्प घरि घरि ण होति जइ खल सदप्प । ता लइवि दोस णिम्मल-मणाह को वित्थरंतु जसु सज्जणाहँ। जइ होंतु ण तमु महि मलिणवंतु ता किं सहंतु ससि उग्गमंतु । जइ होंति णं दह संपत्त खोह ता किं लहंति मयरहर सोह । तं सुणिवि हणिवि दुज्जण पहत्तु मण्णिवि णट्टल भासिउ वहुत्त । पुणु समणे वियप्पवि सहधामु सच्छंदु वि सालंकारु णामु । णउ मुणमि किंपि कह करमि कन्वु पडिहासइ महु संसउ जि सव्वु । लइ किं अणेण महु चित्तणेण अहणिसु संताविय णिय मणेण । जइ वाएसरि पय-पंकयाह महु अत्थि भत्ति णिप्पंकयाहूँ। ता देउ देवि महु दिव्ववाणि सहत्थ-जुत्त पय-रयण-खाणि । ता पत्त-सरासइ वरु णेइ को पासचरित्तहो गुणु गणेइ । घत्ता-णिय तमु णिण्णासमि तह वि पयासमि जह जाणिउ गुण-सेणियहो । भासिउ जिणवीरहो जिय सरवीरहो गोत्तम गणिणा सेणियहो ॥१०॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001718
Book TitleVaddhmanchariu
Original Sutra AuthorVibuha Sirihar
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Religion
File Size9 MB
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