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बड्डमाणचरिउ जो गुण-दोसहँ जाणई वियार
जो परणारी-रइ णिव्वियारु । जो रूव विणिज्जय मार वीरु
पडिवण्ण वयण धुर धरण धीरु । घत्ता-सो महु उवरोहें णिहय विरोहे, पट्टलु साहु गुणोह-णिहि ।
दीसइ जाएप्पिणु पणउ करेप्पिणु उप्पाइय भव्वयण दिहि ।।६।।
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तं सुणिवि पयंपिउ सिरिहरेण
जिण-कव्व करण विहियायरेण । सच्चउ जं जंपिउ पुरउ मज्झु
पइ सभा बुह मइ असझु। पर संति एत्थु विबुहहँ विवक्ख
बहु कवड-कूड-पोसिय-सवक्ख । अमरिस धरणीधर सिर विलग्ग
णर-सरुव तिक्ख मुह कण्ण लग्ग । असहिय पर-णर-गुण-गरुअरिद्धि
दुव्वयण हणिय पर कज्ज सिद्धि । कय णासा-मोडण मत्थरिल्ल
भूभिउडि-भंगि जिंदिय गुणिल्ल । को सक्कइ रंजण ताहँ चित्तु
सजण पयडिय सुअणत्तरित्तु । तहिं लइ महु किं गमणेण भव्व
भन्वयण बंधु परिहरिय गव्व । तं सुणिवि भणइ गुण-रयण-धामु
अल्हण णामेण मणोहिरामु । एउ भणिउं काई पइँ अरुह भत्तु
किं मुणहि ण णट्टलु भूरि सत्तु । घत्ता-जो धम्म धुरंधरु उण्णय कंधरु सुअण सहावालंकरिउ ।
अणु दिणु णिच्चल मणु जसु वंधव यणु करइ वयणु णेहावरिउ ॥७॥
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जो भव्व भाव पयडण समत्थु
ण कयावि जासु भासिउ णिरत्थु । णायण्णई वयणई दुज्जणाहँ
सम्माणु करइ पर सज्जणाहँ । संसग्गु समीहइ उत्तमाहँ
जिण धम्म विहाणे णित्तमाहँ । णिरु करइ गोटि सहुँ वुहयणेहि
सत्थत्थ-वियारण हियमणेहिं । किं वहुणा तुज्झु समासिएण
अप्पउ अप्पेण पसंसिएण । महु वयणु ण चालइ सो कयावि
जं भणमि करइ लहु तं सयावि । तं णिसुणिवि सिरिहरु चलिउ तेत्थु उवविट्ठउ गट्टलु ठाई जेत्थु । तेणवि तहो आयहो विहिउ माणु
सपणय तंबोलासण समाणु । । जं पुत्व जम्मि पविरइउ किंपि
इह विहि-वसेण परिणवइ तंपि । खणु एक्क सिणेहें गलिउ जाम
अल्हण णामेण पउत्तु ताम । घत्ता-भो णट्टल णिरुवम धरिय कुलक्कम भणमि किंपि पई परम सुहि ।
पर-समय-परम्मुह अगणिय दुम्मह परियाणिय जिण-समय-विहि ॥८॥
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