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परिशिष्ट-१ (क) वलभर कंपाविय णाय राउ
माणिणियण-मण संजणिय राउ। तहिं कुल-गयणंगणे सिय पयंग
समत्त-विहूसण-भूसियंगु । गुरु-भत्ति णविय तेल्लोकणाहु
दिट्ठउ अल्हणु णामेण साहु । तेणवि णिज्जिय चंदप्पहासु
णिसुणेवि चरिउ चंदप्पहासु । जंपिउ सिरिहरु ते धण्णवंत
कुलवुद्धि-विहवमाण सिरिवंत । अणवरउ भमह जगे जाँह कित्ति
धवलंती गिरि सायर धरित्ति । सा पुणु हवेइ सुकइत्तणेण
चाएण सुएण सुकित्तणेण । घत्ता-जा अविरल धारहि जणमणहारहि, दिज्जइ धणु वंदीयणहँ ।
ता जीव णिरंतरे, भुअणभंतरि, भमइ कित्ति सुंदर जणहँ ॥४॥
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११५ पुत्तेण वि लच्छि समिद्धएण
णय-वियण-सुसील-सिणिद्धएण । कित्तणु विहाइ धरणियलि जाम
सिसिरयर सरिसु जसु ठाइ ताम । सुकइत्तें पुणु जा सलिल-रासि
ससि-सूरु-मेरु णक्खत्त-रासि । सुकइत्तु वि पसरइ भवियणाहँ
संसग्गें रंजिय जणमणाह। इह जेजा णाम साहु आसि
अइणिम्मलयर गुण-रयण-रासि । सिरि अयरवाल-कुल-कमल-मित्त
सुह-धम्म-कम्म-पविइण्ण वित्तु । मेमडिय णाम तहो जाय भज्ज
सीलाहरणालंकिय सलज्ज । वंधव-जण-मण-संजणिय सोक्ख
हंसीव उहय सुविसुद्ध पक्ख । तहो पढम पुत्तु जण-णयण-रामु
हुउ आरक्खिय तस जीव गामु । कामिणि-माणस-विद्दवण कामु
राहउ सव्वत्थ पसिद्ध णामु। पुणु वीयउ विवुहाणंद हेउ
गुरु-भत्ति संथुअ अरुहदेउ । विणयाहरणालंकिय सरीरु
सोढलु णामेण सुबुद्धि धीरु। घत्ता-पुणु तिज्जउ णंदणु, णयणाणंदणु, जणे पट्टलु णामें भणिउ ।
जिण मइ णीसंकिउ पुण्णालंकिउ, जसु वुहेहिं गुण-गणु-गणिउ ॥५॥
जो सुंदरु वीया इंदु जेम जो कुल-कमलायर रायहंसु तित्थयरु पइट्टावियउ जेण जो देइ दाणु वंदीयणाहँ परदोस-पयासण विहि विउत्त जो दिंतु चउम्विहु दाणु भाइ जसु तणिय कित्ति गय दस-दिसासु जसु गुण-कित्तणु कइयण कुणंति
जणवल्लहु दुल्लहु लोण तेम । विहुणिय चिर विरइय पाव-पंसु । पढमउ को भणियइँ सरिसु तेण । विरएवि माणु सहरिस मणाहँ । जो तिरय-णरयणाहरणजुत्तु । अहिणउ वंधू अवयरिउ णाई। जो दितु ण जाणइ सउ सहासु । अणवरउ वंदियण णिरु थुणंति ।
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