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________________ २८३ परिशिष्ट-१ (क) वलभर कंपाविय णाय राउ माणिणियण-मण संजणिय राउ। तहिं कुल-गयणंगणे सिय पयंग समत्त-विहूसण-भूसियंगु । गुरु-भत्ति णविय तेल्लोकणाहु दिट्ठउ अल्हणु णामेण साहु । तेणवि णिज्जिय चंदप्पहासु णिसुणेवि चरिउ चंदप्पहासु । जंपिउ सिरिहरु ते धण्णवंत कुलवुद्धि-विहवमाण सिरिवंत । अणवरउ भमह जगे जाँह कित्ति धवलंती गिरि सायर धरित्ति । सा पुणु हवेइ सुकइत्तणेण चाएण सुएण सुकित्तणेण । घत्ता-जा अविरल धारहि जणमणहारहि, दिज्जइ धणु वंदीयणहँ । ता जीव णिरंतरे, भुअणभंतरि, भमइ कित्ति सुंदर जणहँ ॥४॥ 10 ११५ पुत्तेण वि लच्छि समिद्धएण णय-वियण-सुसील-सिणिद्धएण । कित्तणु विहाइ धरणियलि जाम सिसिरयर सरिसु जसु ठाइ ताम । सुकइत्तें पुणु जा सलिल-रासि ससि-सूरु-मेरु णक्खत्त-रासि । सुकइत्तु वि पसरइ भवियणाहँ संसग्गें रंजिय जणमणाह। इह जेजा णाम साहु आसि अइणिम्मलयर गुण-रयण-रासि । सिरि अयरवाल-कुल-कमल-मित्त सुह-धम्म-कम्म-पविइण्ण वित्तु । मेमडिय णाम तहो जाय भज्ज सीलाहरणालंकिय सलज्ज । वंधव-जण-मण-संजणिय सोक्ख हंसीव उहय सुविसुद्ध पक्ख । तहो पढम पुत्तु जण-णयण-रामु हुउ आरक्खिय तस जीव गामु । कामिणि-माणस-विद्दवण कामु राहउ सव्वत्थ पसिद्ध णामु। पुणु वीयउ विवुहाणंद हेउ गुरु-भत्ति संथुअ अरुहदेउ । विणयाहरणालंकिय सरीरु सोढलु णामेण सुबुद्धि धीरु। घत्ता-पुणु तिज्जउ णंदणु, णयणाणंदणु, जणे पट्टलु णामें भणिउ । जिण मइ णीसंकिउ पुण्णालंकिउ, जसु वुहेहिं गुण-गणु-गणिउ ॥५॥ जो सुंदरु वीया इंदु जेम जो कुल-कमलायर रायहंसु तित्थयरु पइट्टावियउ जेण जो देइ दाणु वंदीयणाहँ परदोस-पयासण विहि विउत्त जो दिंतु चउम्विहु दाणु भाइ जसु तणिय कित्ति गय दस-दिसासु जसु गुण-कित्तणु कइयण कुणंति जणवल्लहु दुल्लहु लोण तेम । विहुणिय चिर विरइय पाव-पंसु । पढमउ को भणियइँ सरिसु तेण । विरएवि माणु सहरिस मणाहँ । जो तिरय-णरयणाहरणजुत्तु । अहिणउ वंधू अवयरिउ णाई। जो दितु ण जाणइ सउ सहासु । अणवरउ वंदियण णिरु थुणंति । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001718
Book TitleVaddhmanchariu
Original Sutra AuthorVibuha Sirihar
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Religion
File Size9 MB
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