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१०.३९. २५] हिन्दी अनुवाद
२७५ वे न गुरु होते हैं और न लघु, न विरूप और न सुन्दर ही तथा न नर होते हैं और न नारी। न पाण्डव और न द्रोही ही। क्षुधा एवं तृष्णाके दुखो से वे नहीं छुए जाते। दुस्सह मलपटलो से वे लीपे नहीं जाते। लोचन रहित होनेपर भी वे सब कुछ देखते हैं, मन रहित होनेपर भी वे सब कुछ जानते हैं, पूछते नहीं। समस्त लोकालोकमें वे सुन्दर हैं। हे पुरन्दर, इससे और अधिक कहनेसे क्या लाभ ? |
घत्ता-सिद्धो को जो शाश्वत सुख प्राप्त है, उसे कौन कहाँ तक कहने में समर्थ हो सकता है ? उस त्रिलोकपति सिद्धको इस लोकालोक में अरहन्तको छोड़कर और कौन देख सकता है ? ॥२३१॥
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अजीव पुद्गल बन्ध संवर निर्जरा और मोक्ष तत्त्वोंपर प्रवचन इस प्रकार दो प्रकारके (संसारी एवं मुक्त) जीवोंका वर्णन तुम्हारे सम्मुख विशेष रूपसे किया गया है । अब हे सुरपति सुनो, मैं अजीव द्रव्यका कथन करता हूँ और तुम्हारी भ्रान्तिका निवारण करता हूँ। धर्म, अधर्म एवं गगनके साथ कालको गतकाल-जिन भगवान्ने रूप रहितअमूर्तिक कहा है। जो गति लक्षण स्वरूप है उसे धर्म द्रव्य जानो, स्थिति लक्षणसे युक्त अधर्म द्रव्य कहा गया है। अवगाहना लक्षणवालेको आकाश मानो तथा परिवर्तना लक्षणवालेको काल द्रव्य समझो । वीर जिनने कालके तीन भेद कहे हैं-अतीत, वर्तमान एवं आगामी। उस काल द्रव्यका स्थान तीन लोक प्रमाण है। धर्म एवं अधर्म द्रव्य भी तीन लोक प्रमाण तथा इन दोनोंका मान लोकाकाश समझो। आकाश अनन्त है। अब शून्य आकाशको सुनो।
उस शून्यको जिनेन्द्रने अलोक बताया है । उस भुवन कमलको सूर्यने छिपाया नहीं है।
पुद्गल रूपादि ५ गुणोंसे युक्त रहता है, ऐसा ज्ञानियोंने विचार किया है। वह पुद्गल १० स्कन्ध, देश, प्रदेश एवं अविभागी रूपसे जिनेशने ४ प्रकारका कहा है। सम्पूर्ण प्रदेशोंका नाम स्कन्ध है, उससे आधेको देश कहते हैं। आधेके आधेको प्रदेश कहते हैं। तथा अखण्ड १ प्रदेशको अविभागी परमाणु कहते हैं। पुनरपि उस पुरन्दरके लिए जिनेन्द्रने सूचित किया कि वह पुद्गल द्रव्य मेरे द्वारा ६ प्रकारका ज्ञात है। पहला स्थूल-स्थूल कहा गया है, दूसरा स्थूल, अन्य तीसरा स्थूल-सूक्ष्म, चौथा सूक्ष्म-स्थूल, पांचवाँ सूक्ष्म एवं छठवाँ सूक्ष्म-सूक्ष्म । इनमें से पर्वत, पृथिवी आदि १५ स्थूल-स्थूल स्कन्ध हैं, जलको जिनेन्द्रने स्थूल-स्कन्ध कहा है। छाया आदिको स्थूल-सूक्ष्म स्कन्ध कहा है। चार इन्द्रियोंके जो विषय हैं, उन्हें सूक्ष्म-स्थूल स्कन्ध कहते हैं। कर्म नामकी वर्गणाओंको सूक्ष्म कहते हैं तथा परमाणुको सूक्ष्म-सूक्ष्म कहा गया है।
पूरण, गलन आदि गणोंके कारण पुद्गलको अनेक भेदवाला कहा गया है। शुभ-अशुभके भेदसे आश्रव दो प्रकारका है ऐसा मदनसे अजेय जिनेन्द्रने कहा है। २० बन्ध ४ प्रकारका है (-प्रकृतिबन्ध, स्थितिबन्ध, अनुभाग बन्ध, एवं प्रदेश बन्ध )
जिस प्रकार संवर दो प्रकारको है (-द्रव्य संवर, और भाव संवर) उसी प्रकार निर्जरा भी दो प्रकारको जानो (सविपाक निर्जरा और निर्विपाक निर्जरा)
समस्त कर्मोका क्षय ही विचक्षण जिनागमोंमें मोक्षका लक्षण कहा गया है। जिनेन्द्रने अपने निर्मल केवलज्ञानसे जैसा देखा है उसी प्रकार मैंने ७ तत्वोंका उपदेश किया है ।
२५ घत्ता-उन वीर जिनेश्वर परमेश्वरने समवशरणमें इस प्रकार धर्म-श्रवण कराकर विहार किया ॥२३२॥
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