SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 371
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 10 15 20 5 10 २६८ अणुकमेण इउ सोलह सग्गहँ वे - सत्त- दह- चउद्दह - सोलहँ ae aer वावसोवरि सुणु ताम जाम तेत्तीस सरीसर दो- दो-च-च दो-दो सग्गहँ अणुक्रमेण ओही परियाणहिं. जिह सत्तमियह तलु उवलक्खहिँ तिजय-गाडि तिह पेक्खहि अणुदिस .णिय-विमाणि ते गच्छहिँ जाव पंच-पंच हय जोयण विंतर चंद-सूर-गुरु-तारंगारहँ संखामि सुक्कहो अक्खि सयलहँ जीवहँ कम्माहारो दीसइ रुक्खह लेप्पाहारो पक्खि समूहहँ ओज्जाहारो कप्पह कप्पाईय सुराणं • जित्तिय सायर आउ पमाणं परिगहिँ वरिसेहिं सहसाणं तित्तिएहिँ पक्खेहिँ सुराणं पल्लाउस भिन्न- मुहुत्तेणं ऊससंति केवि पक्खेणं असुर असहिँ एक्केण गएणं सुर हुमं सुद्धं मिट्ट आहारं चितिय चित्तेणं संसारि असुहर चउ भेया asमाणचरिउ ३. J. V. सुरसर । ४. D. । Jain Education International धत्ता – फुडु जोयर्णक्कु णारय मुणहि रयणप्पहहो धरिति । अद्धद्ध हाणि कोसहो हवइ सेस महिहि अपवित्तिह ||२२७|| आउ भणिउँ सुरतियाँ समग्गहूँ । अट्ठारह - कमेण मणि जो लह । एक्कु एक्कु वड्डारिज्जइ पुणु । अंतिम सुरहरे हुंति रेसर । संभूवार सग्ग विलग्गहूँ । छह गाय पुहवि वक्खाणहिं । णव- गेवज्ज - सुहासि निरिक्खहिं । पंचाणुत्तर उज्जोविय दिस । उप्पर देव नियच्छहि तावहि । संख समणिय जोइसियामर । कोडिगणिउँ असुर हँ । अहिणाणा गुणुझुण रक्खिउ । ३५ भव भाव णोकम्माहारो | मणुव तिरिक्खहँ कमलाहारो । वह देवहँ चित्ताहारो । निरुवम रूव धराणं जाणं । तित्तिएहि पयणिय-हरिसाणं । होइ भुत्ति मण वित्ति ताणं । परिगएहि णिस्सासो ताणं । णीससंति ताह् पहुत्तेणं । भणि जिणि पिक्खेणं । वच्छर सहणेणं अहिएणं । सुरहि सिद्धिं णि मणे इट्ठ परिणाas वर्ण देहत्थेणं । उगइ भिण्णा भणिय अमेया । [ १०.३४. ७ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001718
Book TitleVaddhmanchariu
Original Sutra AuthorVibuha Sirihar
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Religion
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy