SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 370
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १०. ३४.६] . हिन्दी अनुवाद २६७ ३३ देवोंमें प्रवीचार ( मैथुन ) भावना वे देव अणिमादिक गुणोंसे विशेष रूपसे सुशोभित रहते हैं। प्रतिदिन काम-क्रीड़ामें अनुरक्त रहते हैं । नारी ( देवी ) एवं पुरुष ( देव ) दोनों हो सौभाग्यसे समन्वित रहते हैं। वे दस प्रकारके परिजनों द्वारा मान्य रहते हैं। प्रथम स्वर्गमें जो श्रेष्ठ देवियाँ उत्पन्न होती हैं, वे अपने नियोगसे पन्द्रहवें स्वर्ग तक जाती हैं। ईशान स्वर्गमे उत्पन्न देवियाँ अपने मनमें ही कामवृत्तिका चिन्तन कर अच्युत कल्पमें उत्पन्न होती हैं। भवनवासी आदि देव अनेक विग्रह-शरीरोंको धारण करके तथा दो कल्पवाले देव अपने शरीरसे ही प्रवीचार ( मैथुन ) करते हैं। उनके ऊपरके दो कल्पोंके.देव स्पर्शसे हर्षपूर्वक तथा प्रकट होकर प्रवीचार करते हैं। तथा उसके ऊपरवाले चार कल्पोंमें उत्पन्न देव रूप देखकर ही प्रवीचार करते हैं । पुनः उनसे ऊपरके चार कल्पोंमें देव शब्दस्वरूप सुनकर ही प्रसन्न हो जाते हैं। पुनः चार कल्पोंके देव त्रिदशरूपी रसायनका अपने मनमें विचार करके ही सन्तुष्ट हो जाते हैं। १० इसके आगे ऊपरके देव श्रेष्ठ अहमिन्द्र होते हैं । अतः वे देव प्रवीचार ( मैथुन ) रहित होते हैं। ' जो सुख अहमिन्द्र देवराजोंको है, वह सुख सुन्दर कान्तिवाले कल्पजात देवोंको भी नहीं है। जो परम जिनेन्द्रोंको सुन्दर सुख मिलता है वह अहमिन्द्रोंको भी नहीं मिलता। जिन अमराधिप अमरोंने जिनाधिपकी संस्तुति की है, उनकी आयु सुनो, वह इस प्रकार है उत्तम कायवाले असुरकुमारोंकी उत्कृष्ट आयु कुछ अधिक एक सागर है। नागकुमारोंको १५ उत्कृष्ट आयु तीन पल्यको कही गयी है। सुपर्णकुमारोंकी उत्कृष्ट आयु २३ पल्यकी कही गयी है तथा द्वीपकुमारोंकी उत्कृष्ट आयु दो पल्यकी जानो। घत्ता-शेष भवनवासी देवोंमें प्रत्येककी उत्कृष्ट आयु १३-१३ पल्य तथा व्यन्तरोंकी उत्कृष्ट आयु एक-एक पल्यको जानो। इसमें भ्रान्ति मत करो तथा उसे हृदयमें ठीक मानना चाहिए।।२२६।। ३४ ज्योतिषो तथा कल्पदेवों और देवियोंको आयु, उनके अवधिज्ञान द्वारा जानकारीके क्षेत्र निशिचर-चन्द्रमा एक लाख वर्ष तक जीते हैं। दिनकर एक पल्य अधिक एक सहस्र वर्ष तक जीते हैं। संग्राम में अजेय शुक्र सौ वर्ष अधिक एक पल्य तक जीवित रहते हैं। मोहरूपी वृक्षका दारण कर उसे ध्वस्त कर देनेवाले जिनवर कहते हैं कि अन्य ताराओं व नक्षत्रोंकी आयु कुछ कम एक-एक पल्यकी स्वर्गमें निज परिजनों द्वारा सेवित देवियाँ पाँच पल्यकी आयुवाली होती हैं। उसके ऊपर ५ दो-दो पल्यकी आयु चढ़ती जाती है। यह स्थिति सहस्रार स्वर्गतक जानना चाहिए । उसके आगे सात-सात पल्यकी आयु चढ़ाना चाहिए। अन्तिम सर्वार्थसिद्धि स्वर्गमें पंचावन पल्यकी आय होती है। ( अर्थात् प्रथम स्वर्गमें देवियोंकी आयु पाँच पल्य, दूसरेमें सात पल्य, तीसरेमें नव पल्य, चौथेमें ग्यारह पल्य, पाँचवेंमें तेरह पल्य, छठवेंमें पन्द्रह पल्य, सातवेंमें सतरह पल्य, आठवेंमें उन्नीस पल्य, नौवेंमें इक्कीस पल्य, दसवेंमें तेईस पल्य, ग्यारहवेंमें पचीस पल्य, बारहवेंमें सत्ताईस पल्य, तेरहवेंमें १० चौंतीस पल्य, चौदहवें में एकतालीस पल्य, पन्द्रहवेंमें अड़तालीस पल्य और सोलहवेंमें पंचावन पल्यको आयु जानना चाहिए। इस प्रकार अनुक्रमसे सोलह स्वर्गोंको समस्त देवियोंको उत्कृष्ट आयु जानना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001718
Book TitleVaddhmanchariu
Original Sutra AuthorVibuha Sirihar
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Religion
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy