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________________ २६६ बडमाणचरिउ [१०. ३३.१ ३३ अणिमाइय गुणेहि पविराइय अणुदिणु काम कील अणुराइय । णारि-पुरिस सोहग्ग समण्णिय दह पयार णिय परियणे मण्णिय । पढम सग्गे संजाय पवर तिय जंति पंच दहमइ कप्पइ णिय । ईसाणुब्भव अच्चुव कप्पए मण वित्तिए माणिय कंदप्पए । भावणाई वहु विग्गह धारा दो कप्पामर तणु-पडियारा उवरिम दो कप्पामर फासें फुडु पडिचारु करंति सहासें। तह चउ कप्पुब्भव सुर रूवें चउ कप्पामर सद्द सरूवें। पुणु चउ कप्प जाय डिब्भासण मण पडिचारहि तियस-रसायण । आयहँ उवरि हुंति सुर सारा अहमिदामर णिप्पडियारा । जं सुहु अहमिंदामर रायहँ तं न कप्प-जायहँ सुच्छायह। जं सुंदर सुहु परम जिणिदह तं सुहु णोपज्जइ अहमिंदह । गिसुणि आउ अमरहँ अमराहिव एव हि संथुव-सयल-जिणाहिव । अहिउ उवहि असुरहँ वर-कायहँ पल्लई तीणि णिरुत्तउ णायहँ । सडूढई दुण्णि सुवण्णकुमारहँ दुण्णि वियाणहिँ दीवकुमारह । घत्ता-सेसहँ भावण वितर सुरह एक्केक्कहि जाणिज हि । अद्धहि उपल्ल मा भंति कुरु हिययंतरे माणिजहि ।।२२६॥ 10 जियइ वरिस-लक्खें सहु णिसियरु । एकु पलिउ सय वरिस-समेयउ भणई मोह तरु दारण धूणउँ पढम सग्गे णिय-परियण सेविउ उवरि पल्ल-जुवलेण चडिज्जइ सत्त सत्त जइ पुणुवि चडावहिँ ३४ एक्कु पल्लु सहसे सहुँ दिणयरु । जियइ सुक्कु संगाम अजेयउ । जिणवर तारा रिक्खह ऊणउँ । होंति पंच पल्लाउसु देविउ । ताम जाम सहसारु मुणिज्जइ। पंचावण्ण अंति ता पावहिं । ३४. १. D. °क्कु । २. J. V. सयल । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001718
Book TitleVaddhmanchariu
Original Sutra AuthorVibuha Sirihar
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Religion
File Size9 MB
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