SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 367
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २६४ प्रणासाह 10 बड्डमाणचरिउ [१०.३१.६पुणु वेसयइँ पढम गेवजय तहि दिवड् दु मज्झिमहि मणुजहिं । ... पुणु सउ उवरिल्लहि पण्णासहिँ मुणहि णवाणोत्तरे जिण वैरिसइं। पुणु तुंगत्ते उवरि ससोहई पंचवीस जोयण सुर गेहइँ। पुणु सव्वत्थसिद्धि मिल्लेविणु वारह जोयण नहु लंघेविणु । तहि तइ लोय सिहिरि विणिविट्ठी केवलेण अरुहेण गविट्ठी। उच्छल्लिय सिय-छत्त-समाणी सुद्ध सिद्ध संदोहे माणी। मह जोयणइँअठ्ठ पिंडत्तें पणयालीस लक्ख पिहुलत्तें। सविमाणंतर भिण्ण मुहुत्ते सयणोयरे समय मय णिउत्तें। लिंति देहु आवाध-सहाएँ पुव्वन्जिय वर धम्म पहाएँ । घत्ता-उप्पज्जहिँ सुरचउरंसतणु वेउब्वियहि सरीरहि । मणुयायारहि सहु भूसणहि कडय-हार-केऊरहि ॥२२४॥ 15 ३२ 5 आयासुव मल-पडल-विवन्जिय सुर-तिय-कर-धुव चामर विज्जिय । सयलामल लक्खणहिंसमासिय सहजाहरण विहूसण भूसिय । अणिमिस-लोयण अवियल-ससिमुह मुह-परिमल-परिवासिय-दिम्मुह । चम्म-रोम-सिर-णहर-पुरीसइँ . रेत-पित्त मुत्तामय मासइँ। सुक्क-वोक्क-मत्थिक्क वलासइँ अत्थि-पूव-रस-मीसिय-केसइँ । एयइँ होंति ण देह-सहावे पीडिज्जति कयावि-ण तावें। उग्घडंति परिमल सुह सयडइँ उवगह सत्ति हवंति सुपैयडइँ। तियस-जोणि-संपुडहो-मणोरम रूव-परजिय-रइवर णिरुवम । णीसरंति हरिसाऊरिय-मण जय-जय-सह-पघोसहिं सुरयण । मणि आणंदें मंति ण परियण जीव-णंद पभणहि वंदीयण । पंचवीस चावइँ असुरह तणु सेस भवण वितरह मि दस भणु । सत्त सरासण जोइसियामर . सत्तहत्थ मुणि दो कप्पामर । घत्ता-उप्परे पुणु वुद्धिए विवुह वइ अद्ध-अद्ध तोडिजइ ।। __ सव्वत्थसिद्धि जायहँ सुरहँ एक्करयणि तणु गिजइ ।।२२५।। 10 २. J. V.२ । ३. J. V. दे। ३२, १.J. V. सं। २. J. v.प्प। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001718
Book TitleVaddhmanchariu
Original Sutra AuthorVibuha Sirihar
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Religion
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy