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________________ बड्डमाणचरिउ [१०. २५. १४हिंसा असुहत्ते पीडिय-गत्ते णउ चवहिं। जहिं जहिं परि फंसई अणरइ धंसइ णिय मणहो । तहि तहि खर सयणई णं दुव्वयण. दुजणहो। जं जं आचक्खईं केवलि अक्खइ णय खयरु । तं तं विरसिल्लउ किं पि ण भल्लउ असुहयरु । जं जं अग्घायए घोणई घाय, चत्तमई। तं तं कुणि संगउ णिहिलु ण चंगउ तेत्थुलई। जहि जहि अरवण्णहि निसुणहिं कन्नहिं थिर रयणु । तहि तहिं पयणिय-दुहु वंकावइ मुहु दुव्वयणु । जं जं मणि चिंतइ पुणु-पुणु मंतइ इक्कमणु । तं तं मण-तवणु वेयण-दावणु दलिय-तणु । घत्ता-जरु-अच्छि-कुच्छि-सिर-वेयण उद्धसासु अणिवारिउ । सव्वउ वाहिउ परि संभवहिं नारयदेहि निरारिउ ॥२१८।। ____ 25 २६ सुहँ अणुमीलिय कालु वि जित्थु न लब्भइ किंपि वि कोसिय तित्थु । कहिन्नइ काइँ अहोगइ तिक्खु णिरंतर ताणउँ दूसहु दुक्खु । अराइ पयावह रोहउ कन्हु निओहउँ आसि पुरा पडिकन्हु । भणंतउ एम कुणंतु दुहेण सया परितप्पइ माणसिएण । भिडंतउ सो सहुँ नारइएहि कयंतु व भूरि-रुसा लइएहिं । न भिजइ दाणव-देव-गणेहि रणंगणि कीलहि मत्त मणेहि। अहो तु( कुंजरु पंचमुहेण वियारिवि छल्लिउ एण दुहेण । अहो तुहु एण इओ सि सिरेण मही-महिलाहि निमित्तु खरेण । विसी तुहुँ भक्खिउ वामयरेण विसंतु विले छुह-खीणुयरेण । हओ तुहुँ णिदलिओ महिसेण महंत-विसाणहि सास-वसेण । इमं हणु सारि पयंपिउ एम घयाहउ पज्जलिओसिहि जेम । पयंपइ नारउ नारय मन्ने पडंत-महादुह-जाल असन्ने । गयाऽसि-खुरुप्प-छुरी-मुसलेहि रहंग-सुसव्वल सिल्ल-हलेहि । वियारइ वेरि न वारइ को वि सदेहु वि ताहँ महाउहु होइ । घत्ता-अण्णेण अण्णु वाणहिँ वणिउँ अण्णि अन्नु निवाइउ । अण्णेण अन्नु निदारियउ अन्ने अन्नु विघाइउ ॥२१९॥ ___ 10 २६. १. J. V. नरई । २. D.ह । ३. D. J. V. वो। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001718
Book TitleVaddhmanchariu
Original Sutra AuthorVibuha Sirihar
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Religion
File Size9 MB
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