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________________ 15 5 10 15 २४६ एक्कु पल्लु जीवेवि मरेष्पिणु भवणाम रहँ मझे उपज्जहि तीस भोयभूमीय समुज्जल यि पुणें जस-भरिय महील कंकण- कुंडल - कडय-विहूसिय मइरंवर-भूसण- वज्जंगहि भोयण-भवणंगहिं महि छज्जइ तीस भोभूमिउँ धुव भासिय एवहि अद्धय दहविह जंपमि दह पंचप्पयार सयमह सुणि अज्ज-अज्ज-भावेण विहूसिय मिच्छ णिरुत्त निरंवर दीणइँ अन्न नाहल सबर पुलिंद इँ - अडिवंत दो भे यइँ इढिवंत तित्थयर-हुलाउह अवर वि विज्जाहर चारण रिसि हुति अणिढिवंत वहु भेयहि जिणवर जियइ जहाँ वरिसह अहि सहासु किंपि नारायणु सत्त सयइँ चक्कवइहि अक्ि Jain Education International asमाणचरिउ घत्ता - - हिट्टिम - मज्झिम - उत्तिमतिविह हरि-लुलंत वर चामर । पल्लेक्कुट्टु तीणि जिएवि मरि हुति कप्पवासामर ।।२११|| १९. १. J. V. भो° । तखर्ण वेव्वित लेप्पिणु । जहिं सुंदरयर संख पवज्जहिँ । देवदित्ति - भिच्छिय-विज्जुल । हुति वलवखारुण- हरि-पीयल | खलयण खरवयणेहिं अदूसिय । जुइ-दीव भायण - कुसुमंग हूँ । भो भो भूमि-यहिं दिज्जइ । घत्ता - - पुव्वहँ चउरासी- लक्ख मुणि जिह हरिसीरिहुँ अल्लाह । कम्मावणि-जायहँ माणुसह पुत्र कोडि - सामन्नहूँ || [ १०. १८. ७ १९ णिय- णिय-काल गुणाह समासिय । जिण भणियायम वयण समप्पमि । कम्मभूमि संभव माणव मुणि । मिच्छ कम्म- कूरेण विदूसिय । पारस - वव्वर-भास विहीणहूँ । हरिण विसाण-समुक्खय कंद हूँ । अज्ज माणुस हुंति अणेय हूँ । केसव पडिकेसव चक्काउह | दूरुज्झिय पव-बंधण - किसि । निम्मल केवल-लोयण नेयहिँ । वाहत्तर कय नाणुक्करिसहूँ । तासुवि अहिउ सीरि सुह भायणु । सुपर माउस - विहि जिह लक्खिय । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001718
Book TitleVaddhmanchariu
Original Sutra AuthorVibuha Sirihar
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Religion
File Size9 MB
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