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________________ 5 २३८ वड्डमाणचरिउ [१०. ११.५दु-दुगुणिय छह जोयण. लहइ सुइ आहासहिं जिणवेर पयडिय सुइ । सत्ताहिय चालीस सहासई विणि सयाई तिसट्ठि वि मीसई। चक्खु विसउ एरिसु परिवुज्झहिँ सयमुह भंति हवंति वि उज्झहिं। अइवंतय तुल्लउ गंध गहणु जवणाली-सण्णिहुँ मुणहि सवणु । दिट्ठि मसूरी-पडिम-समाणी. जीह खुरुप्प-सरिस वक्खाणी । हरिय तसंग सोक्ख दुक्खालउ फासु हवेइ भूरि भावालउ । समचउरस संठाण सुहासिउ हुंडु पयंपिउ णरय णिवासिउँ । कुज्जउ वामणु णग्गोहंगरें । तिरिय णरह णियकम्म-वसंगउ । घत्ता-संखावत्ता जोणी हवइ कुम्मुण्णय अवर विमुणि । वंसावत्ता जोणी हवइ थिरु होइ विसयमह सुणि ।।२०४।। 10 5 तहिं णियमेण जिणाहिउ वुच्चइ कुम्मुण्णय जोणी जिणाहिव सेस समुप्पज्जहि दुह खोणिहे तिविहु जम्मु भासिउ जिणुराएँ जोणि सचित्त अचित्त विमीसिय संपुड तहय वियर्ड जाणेव्वी पुत्त-जराउज-अंडज जीवइ उववाएण देवणारइयह उबवायहो अचित्त पभणिज्जइ संमच्छणहो सचित्त अचित्त वि उववायहो सीउण्ह भणिज्जइ सेसह सीय उण्ह आहासिय मिस्स वि होइ तहय जिणु भासइ एयकरण उववायहँ भासिय वियलहँ वियड गब्भ संजायहँ वियलहँ सम्मुच्छिम पंचक्खई सामण्णे नव जोणि समक्खई जीवहिं वारह वरिसइँ विकरण संखावत्ता गम्भु विमुच्चइ। होति राम दोण्णिवि चक्काहिव । वंसावत्ता णामें जोणिहे। गब्भुववाय समुच्छण भेएँ। सीय-उण्ह-सीउण्ह समासिय । संपुड-वियड अवर पभणेव्वी। गब्) जम्मु होइ भव-भायई। फुडु सम्मुच्छणेण पुणु सेसह । गब्भहो मिस्स जोणि जाणिज्जइ । होइ जोणि तह सयमह मिस्स वि। उण्हे वयहु अववहहु मुणिज्जइ । जिणवरेण जाणेवि पयासिय । भव्वयणहँ आणंदु पयासइ । संपुड जोणि भंति णिण्णासिय । संपुड विडय जोणि कय रायहँ । वियड जोणि जडयण दुलक्खहँ । बित्थरेण चउरासी लक्खई। उणवास. अहरत्तइँ तिकरण । 10 15 २. D. म । ३ D.°ल्ल । ४. D.हु । ५. D. हगंउ । १२. १. D. पवियड V. तहयड । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001718
Book TitleVaddhmanchariu
Original Sutra AuthorVibuha Sirihar
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Religion
File Size9 MB
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