SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 339
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २३६ वड्डमाणचरिउ [१०.१०.१ लवणण्णवे कालणवे मीणई हुँति सलिल लीलारइ लीणई। जेम महंत तरंग रउद्दए तेण सयंभूरमण समुद्दए । सेसहिँ नत्थि निरिक्खिउ नाणे मई सुरिंद आयास-समाण । लवणण्णवे जोयण अट्ठारह तिमि तडिणि मुहि तिवन्जिय वारह । कालण्णवे छत्तीस गईमुहे अट्ठारह कीला मय वर कहिं । जे अवसाण मयरहर अणिमिस ते जोयण सय पंच पिहिय दिस । थलयर खयरहँ वड्डिय णेहहँ सम्मुच्छिम गब्भुब्भव देहह । काहँ वि कय वय भाव अजिंदाहिं भासिय इय तणुमाणु मुणिंदहिँ । सम्मुच्छिमु जलयरु पज्जत्तउ जोयण सहसु कोवि फुडुवुत्तउ । जल गब्मुब्भउ णाणे दिट्ठउ । पंच सयई जोयणई पघुटउ। तिप्पयार समुच्छिम कायहँ पज्जत्ती कम रहियहँ एयहँ। भणहिं वियत्थि अरुह गय साहण णर वियत्थि परमेणोगाहण । थल गब्भय तणु धरहँ ति कोसई उकिटेण जिणेण भणिय सई। जाणि जहण्ण सुहुम वायरह मि णियमणे दहसय-लोयण दोहामि । अंगुल-तणउँ असंखउ भायउ मई पंचम णाणे विण्णायउ । घत्ता-सुहुमणिगोयापज्जत्तयहो तइय-समइ संजायहो। णिक्किहु देहु उकिट्ट सुणि मुइवि भंति जलजायहो ।।२०३।। 10 ११ पुणुवि वीरु मण-मोहु विणासइ सण्णिउँ पज्जत्तिल्लउ जाणई एक्क-वि-तिकरण पोट्ठा-पुट्ठउ अप्परिमट्ठउ रूउ णिरिक्खइ इंदहो इंदिय-भेउ समासइ । सुइ पत्तउ पुट्ठउरउ निसुणई। परिमुणंति जिणणाहें घुट्टउ । फासु-गंधु-रसु णवहिं जि लक्खइ। १०. १. J. V. व्वु । ५१ १. D. । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001718
Book TitleVaddhmanchariu
Original Sutra AuthorVibuha Sirihar
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Religion
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy