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१०.९. १३ हिन्दी अनुवाद
२३५ ___ पंचेन्द्रिय जीव संज्ञी और असंज्ञीके भेदसे दो प्रकारके कहे गये हैं। जिनका मन नहीं होता वे असंज्ञी कहे गये हैं। वे शिक्षा-आलाप आदि ग्रहण नहीं कर पाते, वे अज्ञानी रहते हैं, परभावों अथवा चेष्टाओंको नहीं समझ पाते। इन अज्ञानियोंकी पाँच पर्याप्तियाँ होती हैं ( ऐसा कथन ) मुझे छोड़कर अन्य दूसरा कौन कर सकता है ?
पंचेन्द्रिय संज्ञी तियंच-जीवोंके छ: पर्याप्तियाँ और दस प्राण होते हैं। इस संसारमें उनकी १५ संख्या अमित प्रमाण ( असंख्यात) है। हे सहस्रलोचन-इन्द्र, उन पंचेन्द्रिय तिर्यंचोंको भी सुनो और उनकी अवगणना मत करो। ___जलचर तिर्यंच जीवोंके पाँच भेद होते हैं-(१) मकर, (२) ओघर, (३) सुंसुमार, (४) झष (-मीन ) और (५) मनोहर कच्छप ।
नभचर तिर्यंच भी निश्चय ही उद्गत पंख, चर्म, धनरोम, सुन्दर पंख आदि अनेक प्रकार- २० के होते हैं।
स्थलचर तिर्यंच भी चार प्रकारके होते हैं-१ खुरवाले, २ खुरवाले, २ हाथों और २ पैरोंवाले तथा मण्डल-गोल चरणवाले। . घत्ता-उरसर्प, महोरग, अजगर, मणिसर्प और विघातक मृगेन्द्र आदि सरीसृप भी अनेक प्रकारके होते हैं-सरट (छिपकली ) उन्दुर ( -चूहा ), गोह आदि ।।२०१॥
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प्राणियोंके निवास स्थान, द्वीपोंके नाम तथा एकेन्द्रिय और
विकलत्रयोंके शरीरोंके प्रमाण जलचर प्राणी जलमें एवं नभचर प्राणी नभस्तल में तथा थलचर प्राणी मनोहर ग्राम, नगर व पुर तथा द्वीपों समुद्री-मण्डलोंके अन्दर और प्रथम दण्ड-वनोंमें निवास करते हैं।
पुरों व ग्रामोंसे निरन्तर व्याप्त एक लाख योजन विस्तीर्ण नदियों, सरोवरों तथा कल्पवृक्षों, से रमणीक और वलयाकार विस्तृत असंख्यात द्वीपों व समुद्रोंसे युक्त समस्त द्वीपोंमें श्रेष्ठ जम्बूद्वीप है। फिर धातकी खण्ड द्वीप है। पुनः कमलोंसे मण्डित सरोवरोंवाला पुष्करवर द्वीप है। फिर ५ वारुणीवर द्वीप, क्षीरवर द्वीप, घृतमुखद्वीप, नन्दीश्वरद्वीप, अरुणवरद्वीप, अरुणाभासद्वीप, कुण्डलद्वीप, शंखद्वीप, रुचकवरद्वीप, विशाल भुजगवरद्वीप तथा पुनः कुसर्ग कंचुकित अर्थात् भूमिपर व्याप्त दूने-दूने विस्तारवाले द्वीप और समुद्र हैं। ऐसा जिनेन्द्र देवने कहा है। वे सुखका प्रकाश करनेवाले एवं जीवोंके लिए विशाल निवासस्थान हैं।
__ छेदन-भेदन एवं बन्धन आदि पापों सहित जलचर, थलचर, नभचर, स्थलचर पंचेन्द्रिय १० तिर्यंच जीव एकेन्द्रिय, विकलत्रय एवं पंचेन्द्रिय जो प्राणी कहे गये हैं उनके शरीरके प्रमाणोंको कहता हूँ। हे सुरपति, उसे सुनो
घत्ता-कमल नामका एकेन्द्रिय जीव एक सहस्र योजन प्रमाण होता है, द्वीन्द्रिय शंख नामका जीव बारह योजन प्रमाण , त्रीन्द्रिय गोम ( सहस्र पदवाला कानखजूरा ) के शरीरका प्रमाण तीन कोस प्रमाण होता है तथा अष्टार्घकरण अर्थात् चतुरिन्द्रिय जीवके शरीरका प्रमाण १५ एक योजन होता है । ॥२०२।।
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