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२३४ वड्डमाणचरिउ
[१०.८.७सण्णि-असण्णि दुविह पंचेंदिय मण परिहरिय हवंति असण्णिय । परिगिण्हति ण सिक्खा-लावइ अण्णाणियण मुणहिं पर-भावइ। पज्जत्तीउ पंच अमुणंतहुँ
को अण्णारिसु करइ भणिउँ महुँ । पज्जत्ती छक्क दह पाणइ
तिरिय जयंतिसु अमिय पमाणहि । पंचेंदिय तिरिक्ख आयण्णहिं दह-सय-लोयणमा अवगणहि । जलयर पंचमेय मयरोहर
सुंसुमार-झस-कच्छव मणहर । णहयर वियड फुडुग्गय पक्खइँ अवर चम्म घण-लोम सुपक्खइँ । थलयर चउ-भेयइँ चउ चरणई एय-दु-खुर करि-मंडल चरण। घत्ता-उर-सप्प-महोरय-अजयरहिं जेहिं मइंदविघाइय ।
सरिसप्प वि हुंति अणेय विह सरढुंदुरु-गोहाइ य ॥२०१।।
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जलयर जले णहयर गण नहिहरे थलयर गार्म णयर पुर मणहरे । दीवोव हि मंडल अब्भतरे
पढमु दंडे पुर-गाम णिरंतर । जोयण लक्खु एक्कु वित्थिन्नउँ सरि-सरवर-सुरतरुहिं रवण्णउँ । पुणु असंख ठिय वलयायार
दीवंबुहि किं बहु वित्थारें। जंवूदीउ सयलदीवेसरु
धादसिंडु कमल-मंडिय-सरु । पुणु पुक्कर-वारुणि-खीरोवरु
घय महुँ गंदीसरु अरुणोवरु । अरुण भासु कुंडले नामाल
संख-रुजग भुजगवरु विसालउ । तहय कुसग्ग कुंचइय-सिवरवि दूण दीव दूणंबुहि पुणरवि । पभणई जिणु एएसु णिवासइ ठंति विसालई सुक्ख पयासइ । जलयर-थलयर-णहयरै तिरियह छिंदण-भिंदण बंधण दुरियहँ । एय वियल पंचेंदियह वि पुणु तणु पमाणु भासमि सुरवइ सुणु । घत्ता-जोयण-सहासु सररुहुवइ वारह जोयण दुकरणु ।
तिरयणु ति-कोस जोयण पमिउँ पभणिउँ अट्ठद्ध करणु ॥२०२।।
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२. D. चि। ९. १. D. इं ! २. D. लु । ३. D. णयर । ४. V. वाह ।
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