________________
5
io
5
संधि १०
१
तो वीरणाह दाहिण - दिसहे ठिय गुण राइय गणहर । पुणु कप्पामर रमणिउँपवर कढिणुन्नय घण थणहर ॥ पुणु अजय व सकंतिय जोइस विंतर-भवणामर तिय । भावण- विंतर- जोइसियामर पुणु कमणीय कयं कप्पामर । पुणु वइट्ठ णर- तिरिय महिलउ इय वारह-विह-गणु उवविउ । हरे विट्ठरे ठिउ सहइ जिणेसरु भामंडल जुइ णिज्जिय सरु | उह दिसहि परिणिवडेहिँ चामर जय जय सह भणति णरामर । भणइ व तिजय पहुत्तणु मंदि छत्तत्त तो किंकिणि सद्दहि । गंभीरारउ दुंदुहि वज्जइ हरिसेण व रयणायरु गज्जइ । पुप्फविट्ठि विडइस - सिलीमुह सहइ असोउ सुसाहहि मंडिउ ' एत्यंतरे णिण्णासि मारवे
हो वासवासिय आसामुह । रत्त - गुज्झ लच्छी - अवरुंडिउ । अण उप्पज्जमाण दिव्वारवे ।
घत्ता-तहो जिणणाहहो अवहित मुणेवि गोतम-पासे तुरंतउ । उ सुरवइ गणियाणण लइवि मउड- मणीहि फुरंत ||१९४ ||
तर्हि अवलो विणु गुण- गणहरु विप्प वडूव रूपेण सुरेंदें सइँ वासवेण पुराणिउ तित्त माथंभु अवलोव दूरहो पणय- सिरेण तेण गय-माणें पुच्छिउ जीव- द्विदि परमेसरु सो विजय दिव्वज्झुणि भासइ
१. १. V. परिणिर्वाह । २. D.°६° । ३. D. हुँ।
Jain Education International
गोत्तम गोत्तणहंगण-ससहरु । मेरु महीरे वि जिणेंदें । इंदभूइ जिणु सामिउँ जे तह । faess माणु तमोहु व सूरहो । गोत्तमेण महिले असमा I पयणिय-परमाणंदु जिणेसरु | तो संदेह असे विणासइ ।
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org