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________________ ९.२३.१३] हिन्दी अनुवाद २२३ २३ समवशरण की अद्भुत रचना मेघ-समूहका विध्वंस कर देनेवाले तोरणोंपर उत्तम १०८-१०८ अंकुश, चंवर आदि मंगल द्रव्य सुरक्षित थे, जो भगवान्की विभूतिको प्रकट कर रहे थे। तथा ( गोपुरोंके भीतर) नाट्यशालाएँ, वीथियाँ, अशोक, सप्तच्छद्र, चम्पक एवं आम्र नामक चार उपवन [अशोक आदि चार प्रकारके वृक्ष ?] नन्दा, नन्दवती एवं नन्दोत्तर नामक तीन प्रकारकी वापियाँ तथा मणिमण्डप, क्रीडा पर्वत एवं लता-मण्डप बने हुए थे। देव-यन्त्रों द्वारा विधिपूर्वक रचित प्रासाद, ५ सभामण्डप, भवन आदिकी पंक्तियाँ भी सुशोभित थीं। (वीथियोंके चारों ओर ) एक-एक ( वीथी ) पर मयूर, माला आदि दस भेदवाली तथा किंकिणी रवोंसे सूर्यके घोड़ोंको भी त्रस्त कर देनेवाली ऊँची-ऊँची फहराती हुई १०८-१०८ ध्वजा-पताकाएँ थीं। किकिणियों द्वारा निर्मित सुन्दर शाल बनाये गये जो कि पद्मराग मणियोंके द्वारा बनाये गये गोपुर मुखोंसे युक्त थे। गगनचुम्बी मणिमय स्तूप बने हुए थे, जो अपनी किरणावलिसे महागजोंको भी ढंक देनेवाले थे। १० स्फटिकके निर्मल एवं श्रेष्ठ प्राकार हरिन्मणियोंसे निर्मित तथा नूपुरोंसे युक्त श्रीगृह (श्रीमण्डप) तीन प्रकारके सुन्दर पीठ एवं मनोहर १२ कोठे बने हुए थे। इसी प्रकार रत्नमय चक्रसे स्फुरायमान तथा स्वर्ग-श्रीका हरण करनेवाली गन्धकुटीसे वह समवशरण शोभायमान था। घत्ता-धर्मरूपी रथके लिए चक्रके समान मनोहर तथा कामरिपु उन जिनेन्द्रकी इन्द्रने स्तुति की। नियमित रूपसे धर्मरूपी रथके चक्रका नियमन करनेवाले नेमिचन्द्रके लिए जयश्रीके । गृह-स्वरूप कवि श्रीधरने महावीरके समवशरणमें गमनविधि ( रूपकथा ) का विस्तार दिशाओंदिशाओंमें किया है ॥१९३॥ नौवीं सन्धिको समाप्ति इस प्रकार प्रवर गुण-रत्न-समूहसे मरे हुए विबुध श्री सुकवि श्रीधर द्वारा रचित साधु श्री नेमिचन्द्र द्वारा अनुमोदित श्री वर्धमान तीर्थकर देवचरित्रमें श्री वीरनाथके चार कल्याणकोंका वर्णन करनेवाला नौवाँ परिच्छेद समाप्त हुआ ॥ सन्धि ९ ॥ आशीर्वाद जो जगत्के एकमात्र नायक, त्रिलोकोंके अधिपति, सुरेश, चक्रेश एवं असुरेशों द्वारा नमस्कृत चरणरूपी कमलोंकी पूजा-अर्चामें निरन्तर संलग्न रहता है, जो संवेगादि गुणोंसे अलंकृत मनवाला है, जो शंकादि दोषोंसे रहित है वह श्रीमान् सुश्रुत मति एवं साधु स्वभावी नेमिचन्द्र इस संसारमें चिरकाल तक जीवित रहे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001718
Book TitleVaddhmanchariu
Original Sutra AuthorVibuha Sirihar
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Religion
File Size9 MB
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