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बड्डमाणचरित
[९. २३.१
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तोरणहि विहंसिय घंघलेहि वर अट्ठोत्तर सय मंगलेहि। णउ सालि वीहि चउ उववणेहि तिपयार वावि मणि मंडवेहि कीला महिहर लय मंडवेहि। अमरा जंतेहि विहिय रईहे
पासाय सुहालय घर तईहे। अट्ठोत्तर-अट्ठोत्तर सएहिँ
एक्केक्कु अलंकरियउ धएहि । दह भेय महा धुव्विर धएहि किंकिणि रव तासिय रवि-हएहि । किंकिणि-णिम्मिय-साले सुहेण पर पउमराय-गोउर-मुहेण | मणिमय थूहहिं फंसिय णहेहि किरणावलि पिहिय महागएहि । फलिहामल-पायारे बरेहि । हरि मणि मय-णेउर-सिरिहरेहि। तिपयारहिं पीढहि सुंदरेहि वारह-कोटेहि मणोहरेहि। रयणमय-धम्म-चक्कहि फुरंतु गंध उ इहिं सुरहर-सिरिहरंतु । घत्ता-सक्कें थुवि जिणु काम रिउ थम्मरहंगहो मणहरु ।
कय गमणविहि वित्थरिय दिहिणेमिचंद-जय-सिरिहरु ।।१९३।।
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इय सिरि-वड्ढमाण-तित्थयर-देव-चरिए पवर-गुण-रयण-णियर-भरिए विवुह-सिरि-सुकइ. सिरिहर विरइए साहु सिरि णेमिचंद अणुमण्णिए वोरणाह कलाण चउक्क
वन्नणो णाम णवमो परिच्छेउ समत्तो ॥ संधि ९ ॥
जीवाद्यो जगदेकनायकजिनाधीशक्रमाम्भोजयोस्त्रैलोक्याधिपतित्रयेण नुतयोनित्यं सपर्यारतः। संवेगादिगुणैरलंकृतमनाः शैङ्कादिदोषोज्झितः स श्रीमानिह साधुसुश्रुतमतिः श्रीनेमिचन्द्रश्चिरम् ॥
२३. १. D. J. V. हे । २. D. J. V. सं'।
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