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________________ २२२ बड्डमाणचरित [९. २३.१ २३ 5 . तोरणहि विहंसिय घंघलेहि वर अट्ठोत्तर सय मंगलेहि। णउ सालि वीहि चउ उववणेहि तिपयार वावि मणि मंडवेहि कीला महिहर लय मंडवेहि। अमरा जंतेहि विहिय रईहे पासाय सुहालय घर तईहे। अट्ठोत्तर-अट्ठोत्तर सएहिँ एक्केक्कु अलंकरियउ धएहि । दह भेय महा धुव्विर धएहि किंकिणि रव तासिय रवि-हएहि । किंकिणि-णिम्मिय-साले सुहेण पर पउमराय-गोउर-मुहेण | मणिमय थूहहिं फंसिय णहेहि किरणावलि पिहिय महागएहि । फलिहामल-पायारे बरेहि । हरि मणि मय-णेउर-सिरिहरेहि। तिपयारहिं पीढहि सुंदरेहि वारह-कोटेहि मणोहरेहि। रयणमय-धम्म-चक्कहि फुरंतु गंध उ इहिं सुरहर-सिरिहरंतु । घत्ता-सक्कें थुवि जिणु काम रिउ थम्मरहंगहो मणहरु । कय गमणविहि वित्थरिय दिहिणेमिचंद-जय-सिरिहरु ।।१९३।। 10 इय सिरि-वड्ढमाण-तित्थयर-देव-चरिए पवर-गुण-रयण-णियर-भरिए विवुह-सिरि-सुकइ. सिरिहर विरइए साहु सिरि णेमिचंद अणुमण्णिए वोरणाह कलाण चउक्क वन्नणो णाम णवमो परिच्छेउ समत्तो ॥ संधि ९ ॥ जीवाद्यो जगदेकनायकजिनाधीशक्रमाम्भोजयोस्त्रैलोक्याधिपतित्रयेण नुतयोनित्यं सपर्यारतः। संवेगादिगुणैरलंकृतमनाः शैङ्कादिदोषोज्झितः स श्रीमानिह साधुसुश्रुतमतिः श्रीनेमिचन्द्रश्चिरम् ॥ २३. १. D. J. V. हे । २. D. J. V. सं'। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001718
Book TitleVaddhmanchariu
Original Sutra AuthorVibuha Sirihar
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Religion
File Size9 MB
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