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वडमाणचरिउ
[. १२. १२घत्ता-छण-इंदुणिहुँ छत्तु जे तिविहु ईसाणिदें धरियउ।
अग्गई जिणहो दिय-भव-रिणहो भत्ति-भारु वित्थारियउ ॥१८२।।
चालंति चमर सई सणकुमार माहिंद-पवंदिय-जिणकुमार। भिंगार-चमर-धय-कलस-ताल दप्पण पसूण-पडलिय-विसाल । रयवारणाई वसु मंगलाई
भव्वयणई विरइय मंगलाई। तहो पाय-पुरउ पयडंत-सेव
णाणाविह भत्ति करेहि देव । वेएण पत्त गिव्वाण-सेले
आणंदिय चउविह तियस मेले । जिण णाह-अकित्तिम-मंदिरेहि कंचण-मणि-पडिमा-सुंदरेहि। जो भूसिउ भुवणोयर-विसेसु दहसय-फण-पंतिहि जेम सेस । तत्थतिथ एक्क सय जोयणाल दीहत्तें दीह विसाल।। पिंडेन अट्ठ मह-मुणि-गणेहि
आहासिय केवललोयणेहि। घत्ता-जिणवर तणउँ अइ जसु घणउँ सिल-मिसेण संठिउ किल ।
ससि दल-सरिस पयणिय-हरिस परम पंडु-णामेण सिल ॥१८३।।
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१४ तहे उवरि परिट्ठिय तीणि पीढ पंच सय-चाव-मिय रयण गीढ । तहे उवरे मयंदासणु विहाइ एक्केक्क-फुरिय-माणिक्कराई। पंच सय-चाव-उच्चत्तणेण
पंच सय-अद्ध पिहुलत्तणेण । तहि विणिवेसिवि तिल्लोकणाहु परमेसरु तित्थंकर अणाहु । मज्झिमई पास सिंहासणेस
दइ पढम-इंद सई सोहणेसु । पारद्ध पवरु जम्माहिसेउ
देवहिं जय जय सद्दहिँ समेउ । जिण णाह-ण्हवण-विहि संभरेवि आसुरगिरि-खीरंबुहि धरेवि । अविरल सुर मयरुंधेवि पंति अवरुप्परु लइ अप्पहि चवंति । सुर दूरुज्झिय-लोयण-निवेस
वारह-जोयण-मज्झ-प्पएस । कणय-मय-कलस-नीलुप्पलेहि पच्छाइय-मुहुँ पूरिय जैलेहि। वज्जंतहि झल्लरि-काहले हिं
सुर-कय-जय-जय-कोलाहलेहि। कलसहिं दहसय-अट्ठोत्तरेहि अहि सित्तु जिणेसरु सुरवरेहि । पत्ता-भव-भय-हरणु सिव-सुह-करणु जिणु अणंतवीरिउ धुव ।
इउ मण मुणेवि इंदगणिवि वीरु णामु धरि संथुउँ॥१८४॥
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३. J. V. ण । ४. D. इ। १४. १. D. पु । २. D. J. V. ई । ३. D. मुह । ४. J. V.°री । ५. J. V. नं। ६. D. ज । ७.
V. प्रतिमें ९।१४।१० की पच्छाइय मुहु....से ९।१४।१२ की....अट्ठोत्तरेहिं तकके अंश मूल प्रतिके ६५ ख के निचले हाँसिए में परिवर्तित लिपिमें अंकित हैं।
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