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________________ २१० वडमाणधरिउ [९. ११.१ कप्पवासम्मि णेऊण णाणामरा चल्लिया चारु घोलंत स-चामरा। भत्ति-पब्भार-भावेण फल्लाणणा भूरि-कीला-विणोएहिं सोक्खाणणा। णच्चमाणा समाणासमाणा परे गायमाणा अमाणा अमाणा परे । वायमाणा विमाणाय माणा परे वाहणं वाहमाणा सईयं परे। कोवि संकोडिऊणं तणू कीलए कोवि गच्छेइ हंसडिओ लीलए । देखिऊणं हरी कोवि आसंकए वाहणं धावमाणं थिरोवंकए । कोवि देवो करा फोड़ि दावंतओ कोवि वोमंगणे झत्ति धावंतओ। कोवि केणावि तं एण आवाहिओ कोवि देवो वि देवखेवि आवाहिओ। कत्थए देवि उच्चारए मंगलु कत्थए णिन्भरं सुम्मए मंदलु । कत्थए मेसु दूसेण आलोइउ संगरत्थो वि साणोरु सोणाइउ । कत्थ इत्थं पमाणं वयंतं पुरं कर-मजार-भीयाउरं उंदरं । देखे देवीण रूवं सुरो तक्खणे कोरई वंधए वप्प-णिल्लक्खणे । घत्ता-इय सुंदरहँ कप्पामरहँ संतई इंति पलोइय । णारी णरहिँ विजाहरेहि णं जिण-पुण्णे चोइय ॥१८१॥ ___ 10 पंचप्पयार जोइसिय देव जिणणाहहो जम्मच्छव-णिमित्त भवणामर सहुँ भिञ्चिहिँ जेवण वितर-सुरेस विस्थिण्ण-भाल पडु-पडह-रवेण विमुक्क-गव्व संपत्त पुरंदर अइ अमेय कुंडल-मणि-जुइ-विप्फुरिय-गंड पावेविणु सहली-कय-भवेण मायहे पुरत्थु सो गुण-गरिट्ट मायामउ मायह वालु देवि अप्पिउ सहसक्खहो हत्थि जाम हरि-सद्द सुणे वि रयंति सेव। संचल्लिय धम्म णिवेसि चित्तु । जय-जय भणंत संखारवेण । सेवयहि रुद्ध-ककुहंतराल । इय चउ-णिकाय सुर मिलिय सव्व । णिय-णिय-सवेय-वाहण-समय । विणयाइ विमल-गुण-मणि केरंड । रायउलु समाउलु उच्छवेण । णय-सीसहि देविदेहिं दिछु । इंदाणि जिणु णिय-करहि लेवि । तेण वि करि-खंधे णिहित्तु ताम । 10 ११. १. D.र । २. D.रि । १२. १. D. जे । २.J. क । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001718
Book TitleVaddhmanchariu
Original Sutra AuthorVibuha Sirihar
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Religion
File Size9 MB
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