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________________ २०२ बट्टमाणचरिउ घत्ता-तहो णरवरहो, साहिय-धरहो पियकारिणि णामें पिय । ___ हुय जण-सुहय महिला-सुहय महि-मंडण-माणस-पिय ॥१७३।। सुरिंद-चित्त-हारिणी फुरंत-हार-हारिणी। विसुद्ध सीस धारिणी णिरंग-ताव धारिणी। पियंतरंग-रामिणी मटाल-लील-गामिणी। सरूव-जित्त-अच्छरा विमुक्क-दूर-मच्छरा। विसाल-चारु-पच्छला णियंग-कित्ति-विच्छला। सपह-जित्त-कोइला विसाल माइ णं इला। णहाउ णाई रोहिणी चलंत चित्त रोहिणी। रणझणंत-मेहला सजीविए सणेहला। धरावलोयणाउरा समागया सणेउरा। दियंसुधत्थ-चंदिया असेस-लोय-वंदिया। सबंधु-वग्ग-मण्णिया कइंद-विंद-वणिया। गुणावली-विहूसिया ण पाव-भाव-भूसिया। घत्ता-मुंजंतु सुहु पेक्खंतु मुहूं तोहे तणउँ अणुराएँ। सिद्धत्थु णिउ इच्छंतु सिउणेइ कालु पियवाएँ ॥१७४।। 10 इत्थंतर छम्मासाउ तासु ___ अवहित जाणेविणु सुरवरासु । इंदेण अट्ठ वि कणेण वुत्तु लावण्ण-रूव-सोहग्ग-जुत्तु । मुह-विवर-विणिग्गय-दिव्ववासु । विच्छिण्ण-कुंडलायल-णिवासु । जाएवि तुम्हि जिय-कंज-छाय : जिणणाहहो भाविय जणणि-पाय । सेवहु तं णिसुणेवि साणुराय ... चल्लिय मिलेवि वर-ललिय-काय । सिरि-सिहर-फुरिय-रयण-मय-चूल णामेण पसिद्धी पुष्फभूल । चूलावइ णवमालिय णतिसिर सुरयण-मण-पयणिय-कामणिसिर। पुप्फप्पह पुप्फ-समाणकित्ति गिव्वाण मगि सरह सि णइंति । अवर वि रुइ-राइय-कलिय-चित्त मणइ य समणे साणंद-चित्त । णामेण अवर पुणु कणय देवि जिह तिह वारुणि णवकमलु लेवि । आयहिं मह-भत्ति-विभावियाहिं सिरि सिहरे णिहिय-कर-देवियाहिँ । घत्ता-सा परियरिय वहु गुण भरिय पियकारिणि णित्तारिहिं । रेहइ गयणे ससि-रवि सयणे चंदकला इव तारेहिं ।।१७५।। ४. १.J. V. तो। ५. १. D. पुष्प । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001718
Book TitleVaddhmanchariu
Original Sutra AuthorVibuha Sirihar
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Religion
File Size9 MB
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