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________________ हिन्दी अनुवाद कुण्डपुर-वैभव वर्णन जहाँ दिनमें भी अरुणाभ मणियों द्वारा घटित प्राकार-कोट सुशोभित रहते हैं, जहाँ खाइयाँ पातालको गयी हुई हैं ( अर्थात् खाइयाँ अति गम्भीर हैं ) तथा जो ( उन अरुणाभ मणियोंकी छायासे ) सन्ध्याकालीन ( रक्ताभ ) लक्ष्मीको धारण किये हुए के समान प्रतीत होती हैं, जहां कृत्रिम एवं मनोहर इन्द्रनील मणियों द्वारा निर्मित नील कमल एवं श्रेष्ठ ( यथार्थ ) नील कमल चारों ओरसे आकर पड़ते हुए मधुकरोंके रुणझुण-रुणझुण शब्दके बिना बुधजनों द्वारा शीघ्रता- ५ पूर्वक नहीं पहचाने जा पाते, जहाँ उन्नत पूर्ण चन्द्रको प्रभा माथोंमें पहने गये रत्नोंकी प्रभासे दाब दी जाती थी, जहाँ उन्नत एवं मनको निरन्तर सुन्दर लगनेवाली सुशीतल जलवाली वापिकाएँ सुशोभित रहती हैं, जहाँ कामिनियोंके आभूषणोंकी द्युति मनोहर उत्तम भवनोंमें छाये हुए अन्धकारका नाश करनेवाली है, अतः जहाँ रात्रिमें दीपकोंकी ज्योति विफल हो जाती है, इसलिए मानो वे अपने नेत्रोंसे कज्जलका वमन किया करती हैं। जहाँ एक परम दोष भी था कि रात्रि में चन्द्रोदयके होते ही भवनोंके अग्रभागमें लगी हुई चन्द्रकान्त मणियोंके अनवरत चूते हुए निर्मल जलों द्वारा शैलीन्द्र पुष्पोंकी सुवासित रजोपर आवर्तित द्विरेफोंसे युक्त प्रियजनोंके भवनोंकी ओर जाती हुई काम-पीड़ित समग्र युवतियां आधे मार्गमें ही आर्द्र हो जाती हैं। जहाँ कुकवियों ( मन्द बुद्धिवाले कवियों) की समझमें यह नहीं आता था कि वे किस विषयको लेकर क्या कहें ? पत्ता-जहाँ रमणियोंके विमल गण्डस्थलोंमें चन्द्रमा प्रतिबिम्बित-सा प्रतीत होता था। ऐसा लगता था मानो उनको मुख-श्रीको बलात् छीन लेनेके लिए ही चन्द्रमा रात्रिमें वहाँ आता था ।।१७२।। कुण्डपुरके राजा सिद्धार्थके शौर्य-पराक्रम एवं वैभवका वर्णन उस कुण्डपुरमें ( आत्ममति एवं विक्रम सम्बन्धी ) समस्त अर्थोंको सिद्ध कर लेनेवाला सिद्धार्थ नामका राजा राज्य करता था, जो सुरराज-इन्द्रके समान ( दिखाई देनेवाला), जिनधर्मसे देदीप्यमान शत्रु-समूहका नाश करनेवाला, परद्रोहकी इच्छा नहीं करनेवाला, समुद्रके समान गम्भीर, दुष्ट शत्रुओंके मनको भीरु बनानेवाला, धवलकीर्तिरूपी लताके लिए चन्द्रके समान, ताल एवं लयपर्वक घोषोंवाले कन्द (शंख?) को जीत लेनेवाला, कूलरूपी कमलोंके लिए सहस्रांशसूर्य, सहस्रांश-करको प्राप्त करनेवाला शतपत्रदल-कमलके समान नेत्रोंवाला, प्रतिनेत्र (रेशमी वस्त्र ?) प्रदान करनेवाला स्व-परके चरित्रको रक्षा करनेवाला, विपुल सम्पत्तिका संचय करनेवाला, समस्त प्राणियोंके लिए सुखका कारण, समस्त अविधेयों-अकर्तव्यों (पापों) का परिहार करनेवाला, पुण्याश्रवका निर्नाशक, मनमें संन्यासको महान् माननेवाला, रमणियोंके मनके लिए कामदेव, प्रणयीजनोंके मनोरथोंको पूरा करनेवाला, नृप-समूहपर न्यस्त-पादवाला, १० मदरूपी पापको गला देनेनाला, शास्त्रोंके प्रति सन्देहको दूर कर देनेवाला, स्वर्णाभ देहवाला संसारसे उदासीन, परम मेधावी, अति निर्मल एवं दूसरोंके लिए मेघके समान, महिवलयके लिए करवालके समान तथा शत्रुजनोंसे कर वसूल करनेवाला था। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001718
Book TitleVaddhmanchariu
Original Sutra AuthorVibuha Sirihar
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Religion
File Size9 MB
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