________________
१९२
बड्डमाणचरित
[८. १४.१
१४
सुव रयणायरु लहु तरिउ जेण पविमलयर महमइ भुववलेण । पारद्ध तिव्वु तउ तवण जाम हिययहो णिग्गय दो दोस ताम । सुह-संसाहिय-अज्झयणु झाणु सो विरयइ वर अणसण-विहाणु । परिमिउ भुंजइ वजिय सचित्तु विहिणा णिद्दा-णिहणण णिमित्तु । अवगण्णेविणु वयणइँ खलासु विणिवारइ छुह-तण्हा-विलासु । जिम्मलयर-हिययंतर-गयाई
घर-गमण वित्तिपरिसंखणाई । संखोहरइ जिणमउ मुणेवि
रस-चाउ करइ करणई जिणेवि । णिज्जंतु-ठाणे सयणासणाई
विरयइ असमाहि-विणासणाई। वारिय मणु धरइ तियालजोउ पविमुक्क परिग्गहु विगय-सोउ । इय छव्विहु वाहिरु तउ चरेइ जिह-तिह अभंतर पुणु धरेइ । घत्ता-णाणा विहाण विहिणा करइ सदसण णाणा गुण धरइ ।
छावासइ विहिमणे संभरइ संकाइय-दोसई परिहरइ ॥१६७।।
10
१५ संवोहइ भत्ति-समागयाई
सम्मत्तालंकिय-सावयाई। पविरयइ पहावण सासणासु जिणणाहहो पाव-विणासणासु । णाणेण णिहय-भीसण-भवेण
अइ-घोर-वीर-दूसह-तवेण । पंचिहिं समिदिहिं तिय गुत्तियाहिं कंधइ.मणु वहु-गुण-जुत्तियाहिं । ण करइ सपाव विकहा कयावि परमेट्ठि-पयई सुमरइ सयावि। सारयर समागय वर जलेण
कोहग्गि समई अइ विच्छलेण । माणावणिहर-सिरु णिद्दलेवि
मद्दव-कुलिसेण सुकित्ति लेइ । मायएण खविउ सो साहुचंदु किं तिमिरसिरिश पभणियह चंदु । णिय-विग्गह वि णिप्पह-सहाउ जो तेण णिहउ लोहारिराउ।
अलि-उल-समाण-तम-भाव-चत्तु मुणिवर गुण-गणकणवरयरत्तु । तं लहेवि विरेहइ अहिउ तेम फलिह गिरे ससि-किरण जेम । घत्ता-अइरेण तेण मूलहो मयई णिरसियई तटय हियहो भयई।
गय-संग समायरणेण तिहँ जिण्णावेणिरुह पवणेण जिहँ ।।१६८।।
10
१५. १. D. °प्पं । २. D.°घ । ३. D. प्रतिमें इस प्रकार पाठ है-°गिरे सिहरे ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org