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१८४ घडमाणचरिउ
[८.६.५घण-रंध-वियय-तय-भेय-भिण्ण सुइ-सुहयर-मणि-किरणोह-भिण्ण । दिजहिं वजय तहो तक्खणेण संदर संखेण वियक्खणेण। णिम्मल-कोमल-सुहयर विचित्त वर कंचिवाल परि पट्ट-णेत्त । इय दिव्व-वास पोमेण तासु दिजहिं छक्खंड-महीहरासु। वहु-भेय-भिन्न-पहरण-समूहु
णिद्दलिय-वेरि पविरइय-वूहु । दिज्जइ तहो चिंतिउ माणवेण विभविय-सुरासुर-दाणवेण । घत्ता-गयणंगणे रयणहँ तमहरहिँ अण्णुण्ण-मिलिय-णाणा करहिं ।
सुर-धणु करंति सिरि णिरुवमहो अप्पियइ सव्व-रयणेण तहो ॥१५९।।
इय भोयई सयल मणोहराई सो चक्कवट्टि पूरइ सुहाई। अणवरउ विहाणहिँ णव-घणेहिं जिह माऊरहि पाउसे घणेहिं । णव-णिहिहिं दीयमाणहिँ घणेहिं उद्धत्तणु ण वहइ सो घणेहिं । जलहि व णव-दिण्ण-जलेहिं भव्वु धीरहँ ण वियार-निमित्तु दव्वु । इय सो माणंतु दहंगु भोउ
परिणमियामर-णर-खयर-लोउ। ण मुवइ णिय-चित्तहो धम्म-भाव मजहिं विहव हि ण महाणुभाव । सो चक्क-सिरिश आलंकिओवि मण्णइ सम-रई सुहहेउ तोवि । सद्दिहिहे अहिगय-संपयासु
मई ण मुवइ सेयई वय-रयासु । इय रज्जु करतें कय-सुहेण
पुव्वहँ तेयासी-लक्ख तेण। णीय जिण धम्मुक्कंठिएण । विसयंभोणिह परिसंठिएण | घत्ता-अण्णहिं दिणे परे लोलिय-रयणु दप्पणि देक्खंतें णिय वैयणु ।
चक्कहरें केसंतरे लुलिउ सुइ मूलि णिहालिउ णव-पलिउ ।।१६०।।
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६.१. D. मिलि। ७. १. J. V. वययणु ।
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