SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 285
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 10 5 10 १८२ उपण पवर- गुण णव - णिहाण परिहउ पयणंत-धणय - सिरीह तं सुविण विभउ जाउ तासु इय किं भणु को ऊहल- णिमित्तु पुजेवि पश्चक्ख - जिणेसरासु कइवय-दिवसहिँ चक्केण तेण इह भूरि- पुणवंत राह बत्तीस - सहास - णरेस रेहि छन्नवइ- सहस-वर- कामिणी हिं परियरिउ सहइ चक्कवइ तेम स पंडु पिंगलु वि कालु माण सव्वरयणु पउमु वुत्तु पायासवरासण तहो मणोज्ज इय एवमाइ चिंतिय मणेण जव चणय- मूग-कोद्दव-तिलाइँ अवराइँ विचित्त-वियप्पियाइँ asमाणचरिउ धत्ता - पढमउं दस सय राएहिँ सहुँ एक्कुवि ण को वि समु अवरु जुहु । पुणु चक्कु समच्चिङ सुरयणहँ पेक्खंतहँ वियसिय-सज्जनहँु ॥१५७॥ सयल-रिउ-सुगंध-कुसुम इँ फलाइँ अणवरउ देइ तहो कालु सब्बु कंचण-रुप्पय-मय-भायणाइँ तंवायस-मयइँ स-मंदिराए Jain Education International अवयरिय णाइँ सइँ सुर-पहाण । अणवरउ सविहव-वसुंधरीह | पियमेत्तहो णरणाहेसरासु । मइवंतहँ महियले हरिय-चित्तु । इ-पोम तिहुवण-सरासु । ४. D. वि । ५. D. जं । ५. १. D. सुं । २. J.हा । ३. J. V. सां । छक्खंड - वह वसु किय सुहेण । किंपि विण असे मणोहराह । सोलह-सहास पवरामरेहिँ । मयणाणल-हुववह सामिणीहिं । देवी - गणेहिं सुर-राउ - जेम | महका संखु मुजि विसालु । ए नवणिहि तहो जो पुण्ण-जुत्तु । कोमल- तूलालंकरिय-सिज्ज । पुसमप्पर तक्खणेण । घत्ता - कंचन केऊर सुकुंडलइँ मणि-किरण-पिहिय- दिसि - मंडल इँ । विवि हरणाइँ अदुत्थियइँ पिंगलु तहो देइ सँमिच्छिय हूँ ॥ १५८ ॥ गोहूम - मास-वरतंदुलाइँ । तो देइ पंडु अण्णइँ पियाइँ । वहुवि गुम्म - वेल्ली - दलाइँ | किं ण लहइ रु पुत्रेण भव्वु । परियण-मण-सुह- उप्पायणाई | महकालु समप्पइ सुंदराइँ । [ ८. ४.८ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001718
Book TitleVaddhmanchariu
Original Sutra AuthorVibuha Sirihar
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Religion
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy