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वड्डमाणचरिउ
[७. १३.१
१३ सो सुधीरु वुहयणहिं भणिज्जइ कवणु तासु महियले उवमिज्जइ । सो तियाल पुज्जेवि जिणणाहह पविमल-केवल-लच्छि-सणाहह । सिरिचंदण-कुसुमऽक्खय-धूव हि कणय-वण्य-वर-दीवय-चरुवहिं । णाणा-विह-परिपक्क-फलोह हिं णं पुत्वज्जिय-पुन्न-फलोह हिं । पुणु दइ गुरु-भत्तिए जुत्तउ
तं फलु गिह-वास-रयह वुत्तउ । तेण कराइय जण-मण-हारिणि जिण-हर-पंति तमोह णिवारिणि । विमल-छुहा-रस-लित्त मणोहर धवल-धयावलि-दलिय-वओहर । पविरेहइ धरणियलि खण्णिय पुण्णसिरि व तहो मुत्ति-समण्णिय । सद्धा-भत्ति-तुट्ठि-संजुत्तउ . णिल्लोहाइय-गुण-अणुरत्तउ । देइ दाणु सो मुणिवर-विदह' वियसाविय-सावय-अरविंदहँ । घत्ता-णिय तेएं, वइरि-अजेएं, णियमिवि अरिहु समित्तहिं ।
इय संसिउ, उवसम-भूसिउ, करइ रज्जु सुह-चित्तहिं ।।१४९॥
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एक्कहे दिणि पयाउ तहो लक्खेवि समिय-महीयल ताउ णिरिक्खिवि । लज्जए णे णिय दुण्णय-चित्तें संहरियाईव सिरि सई मित्तें। एउ भुवणु मइ ताविउ किरणहिं दूसह-यर-आवय-वित्थरणहिं । 'हा' इय पच्छुत्ताउ करंतउ
तवणु अहोमुहुँ जाउ तुरंतउ । वारुणि अणुरत्तउ णलिणीवइ तहिं अवसरे परियाणेवि णु वइ । वारंतउ णावइ दिवसु वि गउ तहो समीउ मेत्ताणुउ कोड। वासरंति विसंहति महादुहु
मेल्लि दट्ठविसखंड वलिवि मुहु । चक्कवाय-जुवलउ मुच्छंतउ
लहु विहडिउ आकंदु करतउ । सहइ संझ आरुणिय-पओहर णव णे हीर-समाण-मणोहर । दिणयराणुगय-दित्ति वहूवहँ
पय-जावय-पयवीव सरूवह । घत्ता-विदिसिहिं जिह, दिसिहि वि पुगु तिह, अइ आरडियउ विहयहिं ।
कय-सोएं, मित्त-विओएं, णावइ णिरु परिणि हयहिं ॥१५०॥
१३. १. D. J. V. हिं। १४. १. D. V.°णं । २. J. V. वइ । ३. J. V. विहंति । ४. J. V. चक्का ।
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