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[७. ४.९
वड्डमाणचरिउ दुल्लह-रायलच्छि -संगें तहो
मणे ण जाउ मउ रज्जु करतहो । भूरि-विहूइ-विणोय-महंतहँ होइ वियार-णिमित्तु ण संतहँ । घत्ता-ससि-दित्तिय णिम्मल-कित्ति जण-अणुराउ व जणियउ ।
__ तहो भन्ज मुणिय-कसज्ज पुत्तु हेमरहु भणियउ ।।१४०॥
इय संसार-सुक्खु माणतउ सो पंचिंदियाई पीणंतउ । तिय-मणु मयण-सरेहि भिंदंतउ अच्छइ णिय-मंदिरे णिचिंतउ । एत्थंतर एक्कहिँ दिणि कंतए
सहिउ खयर वइ-गउ अइकंतए। कीलणत्थु णामेण सुदंसण
वर-णंदणे खयरालि-विहिय-सणि । तहिं असोय तरु-मूले निविट्ठउ विमल-सिलायले साहु विसिट्ठउ। सुव्वउ णामें सुव्वय-वंतउ
दुप्पयारु तउ तिव्वु तवंतउ । अइ-खीणंगु खमालंकरियउ
सीलालउ उवसम सिरि वरियउ । चारु-चरित्तु पवित्तु दयावरु तियरण-विहि-रक्खिय-तस-धावरु । खयराहिउ तं देखि पहिउ णिहि-लाहेण दरिद्दि व तुट्ठउ । जच्चंधु व लोयण-जुउ पाववि तेण समुउ उडु समथलु णाइवि । घत्ता-सो मुणिवरु वंदिय-जिणवरु भत्तिए पणविउं जाविहिं ।
ते मुणिणा दिण्णी गुणिणा धम्म-विद्धि तहो ताविहिं ॥१४१।।
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पुणु खयरदे पणविवि पुच्छिउ सुव्वय-मुणिवरु हियय-समिच्छिउ । धम्म-मग्गु सो पुणि आहासइ मोह-भाउ पसरंतु विणासइ। धम्मु जीव-दव-मूलु जिणिंदहिं सग्ग-मोक्ख-सुह-हेउ अणिंदहि । भणिउ सोवि दोविहु जाणेव्वउ भव्वयणिहिं हियएं माणेव्वउ । सागारिउ अणुवय-विहि-जुत्तउ गिह-णिरयहिं रक्खियइ णिरुत्तउ । अवरु अणागारिउ गयरायहिं महवय-जुत्तु धरिउ मुणिरायहिं । भो खयरेसर दोसुवि आयहँ आणंदिय-चउ-देवणिकायहँ । मूलु भणेविणु वर-सदसणु
संसारुब्भव-दुहु-विद्धंसणु। सदहाणुजे कीरइ तत्वहँ
सत्त पयारहँ तिम्विह सव्वहँ । तं सदसणु गुणहं करतेउ
संसारंबुहि-तरण-तरंडउ । घत्ता-हिंसाऽलिय धणकण चोरिय रमणी-यण-सयलत्थहँ ।।
सयल विरइ मुणिहु णिहय-रइ थूल-निवित्ति गिहत्थहँ ।।१४२।।
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५. J. रा। ५. १. D. सो। २. D. °रि । ३. J. V. त्य। ६. १.J. V. जी । २. D. 'तु।
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