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________________ १५४ बड्डमाणचरिउ [६. १५.१ दुग्गंधु चम्म-पडलिं छइउ णाणा विहु-वाहिहिं परिलइउ । पयडट्ठि-विहिय-दिढ-जंतु-समु रस-वस-रुहिरंतावलिय समु । एरिसु सरीरु एउ जाणि तुहुँ कुरु सीह ममत्तहो मणु वि मुहुँ । जइ इच्छहि मयवइ मोक्ख सुहु लहु दुविहु परिग्गहु मिल्लि तुहु । घर-पुर-नयरायर-परियणई गो-महिसि-दास-कंचण-कणई। एयई वाहिरई परिग्गहर तन्जियहि समणि नं दुग्गहई । मिच्छत्त-वेय-रायहिं सहिया हासाइय-दोससया अहिया। चत्तारि कसाय-समासियई अब्भंतर-संगई भासियई। इय जाणि चिंति अप्पउ जे तुहुँ वर-वोह-सुदंसण-गुणहिँ सहुँ । इय राय-समागम-लक्खणई भिण्णइँ भावाई विलक्खणई। जइ णिवसहि संजम-धरणिहर सम्मत्त गुहोयरि तिमिर हरे। घत्ता-सम-णह हिँ दलंतु कूर कसाय गइंद। ता तुहुँ फुडु भव्वु होहि मइंदु मइंद ॥१३२।। 10 हिययरु ण किं पि सुहमाणसहो कम्मक्ख उ ते ण होइ परहो। जिण वयणु-रसायणु पविउलुवि कण्णंजलि-पुडहि पियहि खलु वि । विसय-विस-तिसा णिरसिवि णरहो अजरामरत्तु विरयइ न कहो। कोवग्गि समंबुहि उवसमहिं अइमद्दवेण माणु वि दमहिं । अज्जव गुणेण माया जिणहिं मुव लोहु सउच्च उच्च मणहिं । भो वीहह जइ ण परीसहह उवसम रइ हरिवर दूसहह । ता तुज्झ विमलयरु जसु सयलु धवलइ धरणीयलु गयणयलु । परमेट्ठि-पाय-पंकय-जुय हो । विरयहि पणामु वुहयण-थुव हो। परिहरु तिसल्ल दोसई भयई __ परिपालि पयत्तें अणुवयई। घत्ता-णिय देह ममत्तु परिदूरुज्झहे चित्त । कुरु हरिणाहीस जो करुणेण पवित्तु ॥१३३॥ 10 १५. १.J. V. म। १६. १. D. V.°प । २. D. J. V. पं । ३. D. J. V. कण्णेण । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001718
Book TitleVaddhmanchariu
Original Sutra AuthorVibuha Sirihar
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Religion
File Size9 MB
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