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________________ १५२ वडमाणचरिउ [५. १३.१ 5 १३ तहिं खेय-खीणंगु खणु जाम वीसमई न लहेइ केणवि पयारेण तारमई । अइ निसिय-मुह-सत्थ-सम-पत्त-मुक्खेहिं तरुवरहिं दारियई परिविहिय-दुक्खेहि । दंसाईं कीडेहिं कूरेहिं दंसियई वजमय तुंडेहिं भक्खिवि विहंसियई। हुयवहि घिवेऊण मुग्गर पहारेहिँ धूरियई मारियई पर-पाण-हारेहि। करवत्त तिक्खग्ग-धाराहिँ फाडियई दिढु वंधि लुटेलि पुणु पुणु वि ताडियई। वज-मय-नारीहु आलिंगणं देइ नारइय-वयणेहि कारुन्नु कंदेइ । आव-माहस-मायग-कुक्कुडह तणु लेइ असुरेरिउ झत्ति कोवेण धाववि। आरत्त नयणेहिं दिक्खेवि जुझेइ सहुँ अवर-गारइयसंघेण मुझेइ । कर-चरण-जुय रहिउ तरुवरहिं आरुहइ नारइय-संदोहु देखेवि संखुहइ। निय-मइए सुहुमनि पविरयइ जं जं जि पयणेइ फुडु भूरि तहो दुक्खु तं तं जि । इय नरय-दुक्खाइँ सहिऊण तुहुँ जाउ खर-नहर-निद्दलिय करिकुंभ मयराउ । घत्ता-इय हरिणाहीस तुज्झु भवावलि वुत्त । एवहिं पुणु चित्तु थिरु करि सुणु समजुत्त ।।१३०।। ___10 अविरइ कसाय जोएहि थिउ मिच्छत्त पमायहिँ णिरउ जिउ । परिणाम वसिं तहो संभवइ फुडु वंधु तिलोयाहिउ चवइ । वंधेण चउग्गइ गइ लहइ गय अणुबंधि विग्गहु धरइ । विग्गहहु होंति इंदियई लइ इंदियहिं वि जायई विसयरई। विसयरइहि पुणरवि दोस चिरु भवसायरि हिंडइ तेहिं निरु । वय-संजुउ आइ-वयहिँ रहिउ इय वंधु जिणेहिँ जीवहो कहिउ । सो मयवइ होहि पसम निलउ विरयहि कसाय दोसह विलउ । कुमयाणुवंधु परिहरिवि लहु जि गवर-मउ मणि भावहिँ दुलहु । ससमई सयलइँ जीवइ गणिवि वह-रह विहुणहिं जिणमउ मुणिवि । अहो जपंतउ इंदियहिं सुह हर वर मणि जाणहि तं जि दुहु । घत्ता–णव-विवरहिँ जुत्तु असुइ सुरालि-णिवद्ध । किम कुल-संपुन्नु खइ मलेण उट्ठद्ध ॥१३१।। 10 १३. १. D. खेयर । २. D. में यह पद नहीं हैं। ३-४. D. इं। ५. D. हो । ६. J. V. कुं। ७. .ण्णि । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001718
Book TitleVaddhmanchariu
Original Sutra AuthorVibuha Sirihar
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Religion
File Size9 MB
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