SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 253
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १५० वड्डमाणचरिउ [६.११.१ ११ एत्थंतर णरइ विचित्तु दुहु अणुहुंजे विणु अलहंतु सुहु । कह-कहव विणिग्गउ कय हरिस सरि-सर-सिहरिहिं भारह वरिसे। सो चक्कपाणि पिंगल-णयणु भंगुर-दाढ़ा-भासुर-वयणु । सीहयरिहिं भीसणु सीहु हुओ णं वइवसुसइ अवयरिउ दुओ। अविरय-दुरियासउ पुणुवि हरि गउ पढमणरइ करि पाउ मरि । जो हरि गउ णरइ मईद मुँणि सो तुहुँ संपइ एवहिँ णिसुणि ॥ णरय-भव-समुब्भउ दुहु कहमि णिय-मइ-अणुसार णउरहमि । पावेवि कसणु किमि-कुल-वहणु दुग्गंध-हुंड-संठाण तणु। उवरासु पएसहो परिचडइ णं वाणु अहो-गइ पुणु पडइ॥ भय-भरिय-चित्तु तं णिएवि णिरु , , णारय-जणु घग्घर-घोर गिरु ।। घत्ता-जंपइ "मरु मारि-धर धर" तं णिसुणेवि । सो णारउ चित्ति चिंतइ सिरु विहुणेवि ॥१२८॥ 10 १२ को हउँ कि मई किउ चिरु दुरिउ जेणेत्थ समुप्पण्णउँ तुरिउ । इय चिंतंतहो तहो हवइ लहो विवरीओवहि-पविहिय-कलहो। णाणेण तेण सव्वु वि मुणइँ पंचविह दुक्ख णिहणिउँ कणई। हुयवह घिवंति नारय मिलिवि पायंति यूँ मुहुँ निदलिवि । पीलिज्जंतउ जंतेहिं णिरु विलवइ विमुक्क-कारुन्न-गिरु । अइ कूर-तिरिय-निद्दलिय तणु कंदंतु महामय-भरिय-मणु । सह-जाय-तन्ह घरि सुक्कु मुहुँ भज्जंतु झत्ति वइरिय-विमुहुँ। पइसइ वइतरणिहि तरियगइ . विस-पाणिय-पाण-निहित्त-मइ । नारइयहिँ उहय-तड-ट्ठियहिँ । कर-णिहिय-कुलिस-मय-लट्ठियहिं । पुणु पुणु वि धरेविणु गाहियई णाणाविह दुक्खह साहियई। कह कहव लहेविणु रंध पहु आरुहइ महीहर-सिहरि लहु । घत्ता-हरि-कंकराल पुंडरीय हउ तम्मि। अइ असुहु लहेवि पइसइ तरु-गहणम्मि ॥१२९॥ 10 ११. १. D. सेव । २. D. °सि । ३. D. मणु । १२. १. D. णिणिउ । २. D. धूमुमुहूं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001718
Book TitleVaddhmanchariu
Original Sutra AuthorVibuha Sirihar
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Religion
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy