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________________ १४८ वडमाणचरिउ [६.९.१ ज परिहरेवि सहिय निवेइय अणुकमेण वररूव-राइय। . लज्जमाणाए साणणं करि परामुहं सरसुहाणणं । अमियतेय-वर-कंठ-कंदले चित्त माल विहिणा सुकोमले । धय-वडोह-परि-झंपियंबरे णरह पेक्खमाणहँ सयंवरे । कुसुममाल तारा मालिया रुणुरुणंत-छच्चरण-लालिया। मुक्क झत्ति सिरिविजय-कंधरे खयर-मणु हरंतीए बंधुरे। करि विवाहु णिय-सुवह सोहणं खेयरावणीसर-विमोहणं। चक्कवट्टि-हलहर-विसजिओ अक्ककित्ति अहियहि अणिजिओ। तुट्ठमाणु कहकहव णिग्गओ तणुरुहेण सहुँ णियपुरं गओ। भुंजिऊण चक्कवइ-लच्छिया महि तिखंड जुत्ता समिच्छिया। णिय-णियाण-वसु कन्हु सुत्तओ मरेवि रुद्द-झाणेण पत्तओ। घत्ता-दुत्तरदुक्खोहे सत्तम णरइ सपाउ । तक्खणे मेत्तेण तेतीसंबुहि-आउ ॥१२६॥ 10 तं पेक्खेवि विलवइ सीरहरु णयणंसु वाह सिंचिय-अहरु। । विहुणिय-सिरु कर हय-उरु वि तिह मुणिवरहँ विमणु विद्दवइ जिह । थविरहिं मति-यणहिँ वोहियउ वर वयणहि कहव विमोहियउ। तेण वि परियाणेवि गइ भवहो असरण-दुहयर खण-भंगुरहो। परिमोक्क सोउ अणु-मरण-मणा हरिकंत सयंपह विहुरमणा । विणिवारिवि वयणहिँ सुहकरहिं मह-मोह-जाय-पीडा-हरहिं । णिय जस धवलिम पिहियंवरहो हुववहु देविणु पीयंवरहो। सिरिविजयहो अप्पिवि सयल महिं भव-दुह-भय-भीएँ लच्छि सहि । हलिणा पण वि णिप्पंकयएँ मुगि कणय कुंभ पय-पंकयई। जिण-दिक्ख गहिय सिक्खा सहिया सहुँ णिव-सहसें माया-रहिया। तव तेएँ घाय-चउक्क हणि केवलणाणेण तिलोउ सुणि । घत्ता-पुव्वई संवोहि सेस-कम्म-परिचत्तु । गइ धम्मु सहाय बलु मोक्खालए पत्तु ॥१२७।। 10 ९. D. पा। १०. १. D. कं । २. D. य°। Jain Education International For Private & Personal Use Only : www.jainelibrary.org
SR No.001718
Book TitleVaddhmanchariu
Original Sutra AuthorVibuha Sirihar
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Religion
File Size9 MB
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