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वड्डमाणचरिउ
[५.२३.१
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दुवई इय वियलिय समत्थ दिट्ठाउहु हयगलु करवि करयले ।
हयरिउ चक्क चक्कु धारालउ पभणइ रण सकलयले ॥ तुह चिंतिउ चूरइ एहु चक्कु
धरणहूँ वलेण सक्कु वि असक्कु । महु चरण सुमरि परत्त हेउ तं सुणेवि समासइ गरुडकेउ । भीरुहे भीयरु तुह एउ वुत्तु
नव धीर-वीर-सूरहिं निरुत्तु । वण-गय-गजिउ भीसणु सयावि वण-सावयाहँ ण हरिह कयावि । को मण्णइँ सूरउ तुज्झु चक्कु
महु भावइ णाइँ कुलाल-चक्कु । तहो वयण-जलण-संदीविएण
णर-नहयरेहिं अवलोइएण । आमुक्कु चक्कु हयकंधरेण
गल गन्जिवि णिजिय-कंधरेण । णिय-कर-णियरेहि फुरंतु चक्कु उज्जोविय-नहु णं पलय-चक्कु । मयवइ-विरोहे करि चडिउ जाम कोलाहलु किउ देव हि ताम । तं लेवि तुरयगलु वुत्तु तेण
महु पाय-पोम पणवहि सिरेण । इय भणिउ जाम विजयाणुवेण सर-पूरिय-सुरगिरि साणुगण । भुवल तोलिय वल मई-गलेण तातेण वि ण सहिउ हयगलेण । को तुहुँ सइँ मण्णहि अप्पुराउ मह पुणु पडिहासहि णं वरा। ता हरिणा पमणिउ किं अजुत्तु रे-रेण मुणहि संगाम-सुत्तु । किं भासहिं कायर णय णिहीणु तुहँ मई अवलोइउ णिच दीः । पेक्खंतह देवहँ दाणवाहूँ। उभय बलहँ खेयर माणवाहूँ। णित्तुलउ अज्जु तोड़ेवि सीसु तुह तणउँ मउड मणिकंति सीसु । घत्ता-करे कलेवि चक्कु विजयाणुवेण णेमिचंद कुंदुज्जलु ।
. इय भणि तहो सिरु चक्कै खुडिर उच्छलंत-सोणिय-जलु ।।११७|| इय मिरि-वड्ढमाण-तित्थयर-देव-चरिए पवर-गुण-णियर-भरिए विबुह सिरि सुकइ सिरिहर विरइए ह सिरि णेमिचंद अणुमण्णिए तिविट्र-विजय-लाहो णास
पंचमो परिच्छे ओ समत्तो ॥संधि-५॥ .
. जगदुपकृति रुन्द्रो जैन पादार्चनेन्द्रः
सुकृत कृत वितन्द्रो वन्दिदत्तोतु चन्द्रः । गुरुतर गुण सान्द्रो ज्ञात तारादि मन्द्रः स्वकुल-कुमुद-चन्द्रो नन्दतान्नेमिचन्द्रः ।।
२३. १. व्यावर प्रतिमें महुपायपोम....से....मइगलेण तक पृ. ४३ क. पृष्टके बदली हुई लिपिमें निचले
हाँसिएमें लिखा हुआ है । २. J. V, भुवलि । ३. D. य । ४. J. ज्ज।
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