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________________ ५. २२. १४] हिन्दी अनुवाद १३७ तुमुल-युद्ध-युद्धक्षेत्रमें हयग्रीव त्रिपृष्ठके सम्मुख आता है दुवई उन दोनों ( -विजय एवं नीलरथ ) के दुर्जेय बलको देखकर लोग कौतुकसे भरकर सन्देहास्पद मनवाले हो गये कि इस युद्ध में कोई जीतेगा भी या नहीं। जिस प्रकार भ्रमर-समूहसे व्याप्त मद-जलवाले करीन्द्रको पंचानन–सिंह कृतान्त-गोचर बना देता है, उसी प्रकार संग्राममें दूसरोंके लिए असाध्य नीलरथ ( विद्याधर ) को भी बलवान हलधर (विजय) ने अपने पराक्रमसे मार डाला। इस प्रकार विनिहत खेचर-प्रधानोंको प्राण-विवर्जित ५ देखकर हयकन्धर-हयग्रीव बायें हाथमें धनुष लेकर क्रूर भावसे झपटा। अवशिष्ट समस्त सेनाको . डाँट-फटकारकर तथा घावोंसे मांस निकलते हुए अपने शरीरको उसे दिखाकर उस ( हयग्रीव ) ने रोषपूर्वक पूछा-"नारी जनोंके लिए इष्ट, दुर्जेय, दुष्टाशय ( वह ) शत्रु त्रिपृष्ठ कहाँ है ?" इस प्रकार पूर्व-जन्मके क्रोधसे दीप्त, पसीनेसे तर, विशाल शरीरवाला वह हयग्रीव मत्त-मातंगपर आरूढ़ होकर पूछता-पाछता हुआ अत्यन्त गम्भीर उस ( त्रिपृष्ठ ) के सम्मुख ( अनजाने ही ) आ १० पहुँचा। दुष्टजनोंका दलन करनेवाले विजयके अनुज-त्रिपृष्ठको देखते ही वह चक्रवर्ती हयग्रीव अपने हृदयमें सन्तुष्ट हुआ और–“यह शत्रु तो मेरे योग्य है" इस प्रकार कहकर वह मध्य अंगुलीसे धनुषकी डोरीको ठोकने लगा। ___घत्ता-उस हयग्रीवने तत्काल ही विधिपूर्वक, देदीप्यमान, वज्रफलवाले दुनिवार एवं कराल वज्रमय बाणोंको छोड़ा ॥११५॥ तुमुल-युद्ध-त्रिपृष्ठ एवं हयग्रीवकी शक्ति-परीक्षा दुवई विजयके कनिष्ठ भाई-त्रिपृष्ठने ( हयग्रीवके ) उन बाणोंको बीच ( मार्ग ) में ही काट डाला । शत्रु हयग्रीव द्वारा इस त्रिपृष्ठपर किये गये खङ्ग-प्रहार अपने-अपने स्थानपर फूल बनते गये। उस अवसरपर हयकन्धरने धरातलको भी कँपा देनेवाला 'तम-बाण' छोड़ा। उस एक बाणने क्षणभरमें ही रात्रि-जैसा घोर अन्धकार करके पृथिवीतलको मरुवत् बना डाला। ५ किन्तु विजयानुज उस त्रिपृष्ठने उस (तम-) बाणको भी रविके समान अपने कौस्तुभ-मणिकी किरण-समूहसे नष्ट कर दिया। तब प्रतिहरि (हयग्रीव ) ने आशीविषकी अग्निज्वालाके समान विकराल फणि-फणाल (-नागबाण ) छोड़ा। हयग्रीवके शत्रु हरि-त्रिपृष्ठने समर-युद्ध में अनिर्वार 'गरुड़बाण' से उसका भी विध्वंस कर दिया। तब हयकण्ठने चन्द्रसहित आकाशको तुंग शृंगोंवाले गिरिवरोंसे ढंक दिया। तब त्रिपृष्ठने उन गिरिवरोंको पुरन्दर-इन्द्रके वज्रके समान सुन्दर । वज्रबाणसे दलित कर दिया। तब हयकन्धरने धूमसे व्याप्त ज्वालामुखीवाली अग्निसे युक्त अग्निबाण छोड़ा। तब देवांगनाओंके नेत्रोंको आनन्दित करनेवाले पोदनपुर-पतिके लघु पुत्र उस त्रिपृष्ठने विद्यामय मेघवर्षा द्वारा धरणीधरोंकी अग्निको शान्त कर दिया। घत्ता-तब हयग्रीवने गरिष्ठ त्रिपृष्ठपर शीघ्र ही प्रज्वलित शक्ति दे मारी, किन्तु वह शक्ति उस ( त्रिपृष्ठ) के वक्षस्थलपर स्फुरायमान किरणोंसे युक्त हारलता बन गयी ॥११६|| १८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001718
Book TitleVaddhmanchariu
Original Sutra AuthorVibuha Sirihar
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Religion
File Size9 MB
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