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बड्डमाणचरिउ
[५. २१.१२१
दुवई तहो दोहंपि दिक्खि दुजउ वलु हुउ कोडु गओ जणे ।
को जिणिहइँ न एत्थु रणे एयह इय संदेह-हय-मणे ।। अवरहो असज्झु संगर वलेण णीलरहु हलेण हण्णेवि वलेण । - विरइउ कयंत-गोयरु करिंदु — हरिणेव दाण धवियालि-विंदु । ___ इय खयर-पहाणई विणिहयाइँ अवलोइवि पाण-विवजियाई । धाविउ हय कंधरु-कूरभाउ
वामेण करेण करेवि चाउ । तज्जेवि इयरहँ सयलई वलाई दरिसिय तणु-वण-णिग्गय-पलाई। कहिं सो सरोसु णारियण-इट्ठ दुज्जउ उट्ठासउ रिउ तिविट्ठ । इय पुव्व-जम्म कोवेण दित्तु पासेय विसाल पुडिंग सित्तु । पुच्छंतु मत्त-मायंग-रूदु
तहो पुरउ थक्कु अच्चंत गृदु । विजयाणुअ दसैण हियइँ तुट्ट हयगीउ चक्कवइ दलिय-दुछ । 'महु जोग्गु एहु रिउ' एउँ भणेवि मज्झंगुलीए धैणु-गुणु हणेवि । घत्ता-विज्जामय-वाणइँ तेण लहु पविमुक्कइँ असरालइँ ।
विहिणा दिप्पंत कुलिस-हलइँ दूसह-यरइँ करालइँ ॥११५।।
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दुवई ते सर अंतरालि पविहंजिय विजय-कणिट्ठ-भाइणा ।
णिय ठाणेहि फुल्ल-मय तहोहुव असिदारिय अराइणा ।। तह अवसरि कंपाविय धरेण
तमुवाणु मुक्कु हय कंधरेण । विरइय णिसि-घोरं धार तेण
एक्कहिँ कय महिमरुवहु खणेण । सो णिण्णासिय विजयाणुवेण रविसम कोत्थुह-मणि-करचएण । पडिहरिणा पेसिय फणि-फणाल आसी विसग्गि-जाला-कराल । ते विद्धंसिय हरि वइरिएण
गरुडेण समरि अणिवारिएण । हयकंठे पच्छाइ ससोमु
गिरिवरहिं तुंग सिंगेहिं वोमु । ते दलिय तिविढे सुंदरेण
पविणालहु णाइँ पुरंदरेण । हयकंधरेण मुक्कउ हुवासु
धूमाविल-जालावलि-हुआसु । तो सुरतिय-णयणाणंदणेण
पोयण-पुर वइ-लहु णंदणेण । पसमिउँ विज्जामय जलहरेहि धाराहि सित्त धरणीहरेहि। घत्ता-पजलंति सत्ति परिमुक्क लहु हयगीवेण गरिटुहो।
विप्फुरिय-किरण वर-हार-लय साहुव हियइँ ति विट्ठहो ॥११६।। २१. १. D.°णे । २. D. °णि । ३. J. V. घं। २२. १. D. J. V. सा। २. D. प्रतिमें यह अन्तिम चरण नहीं है। ३. D. पजलंत । ४. D.J. V.
साहुअ।
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