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________________ १२० 10 वड्डमाणचरिउ [५.८.६आरुहिउ पयावइ वारणिंदे सहसत्ति विहिय मंगल अणेदे । खेयरहि कवय-संजुवहिँ जुत्तु आरुहे वि करीसरे समरे धुत्तु । असि-मुट्ठिहिं सयरु परिदवंतु जलणजडि विणिग्गउ तेयवंतु। वित्थिण्ण-वंसि सिक्खा-समाण गंभीर-घोसि गरुवइ सदाणे। दसणमित्ते विदावि-सूरे आरुहेवि समर संगाम सूर। दप्पापहारे दुजय-करिंदि लहु अक्ककित्ति दारिय-गिरिंदि । दंभोलि सरिसु महु तणउँ देहु ण गणई महु मणु सण्णाहु एहु । इय भणवि समर-जय-सिरि रएण विजएण ण चित्तउ णिच्छवेण । पत्ता-पविमल-तणु वलयंजण-सरिस काल मेह-मह-मयगले । आरुहिउ सहइ अवियल-ससिर काममह मंडिय-गले ॥१०२।। दुवई महु महि-वलउ सयलु रइकंतहो कह पोरिसु न थक्कओ। इय भय-वजिएण सण्णाहु ण णिरु हरिणा विमुक्कओ। सरयंवर रुवि उरयारि-केउ विसरिस-गुण-गण-लच्छी णिकेउ । संठिउ हिमगिरि-सण्णिह-करिंदे णं णव-जलहरु रुप्पय-गिरिंद । तहो परियरेवि ठिउ देवयाउ सुंदर-यर गयणंगण-गयाउ । णव-रवि-विंदु वरुवि-संपयाउ तहो आणण वसु चलियउ सराहु । मह-धयवड रुंधिय-वारिवाहु संपेसिय अवलोयणिय-नाम देवी हरिणा संजणिय काम । देक्खण-निमित्त परवलहो सावि तक्खण-निमित्तु संपत्त धावि । भासंति तुरय-गलु सहुँ निवेहिं उट्ठिउ खयरिंदु विणिक्किवेहि । पुव्वहँ तुह तेएँ सयल छिन्न खयरेसराह विज्जा-विभिण्ण । णिरसिय-पक्खाइँ य ण हयराइँ संगर गिण्हईं णरु को वि ताई। अरि-सिष्ण-वत्त वज्जरिय तासु विरमिय विजाहर वइरियासु । णिय-कर जुएण सिरि विक्खिरंति कुसुमंजलि सुरयण-मणु हरंति । घत्ता-गय-लंगलु मुसलु अमोहुँ मुहुँ देक्याई वलहद्द[हो] । दिएणइ विजयहो विजयहो करण णव-णीरहरू णिणदहो ॥१०३।। ३. D.णि । ९. १. D.ह। 15 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001718
Book TitleVaddhmanchariu
Original Sutra AuthorVibuha Sirihar
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Religion
File Size9 MB
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