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________________ ५.८.५] हिन्दी अनुवाद ११९ सैन्य समुदाय अस्त्र-शस्त्रोंसे सुसज्जित होकर अपने स्वामी - त्रिपृष्ठके सम्मुख उपस्थित हो गये दुवई समरमेरीकी ध्वनि, जो कि जलके भारसे नम्र हुए मेघोंकी स्थितिसे शंकित मनवाले मयूरोंको सुन्दर लगनेवाली एवं आनन्दित करनेवाली थी, दिशाओंमें फैल गयी। समरभेरीके उस शब्दको सुनकर जय-जयकार बोलकर भुवन तलमें प्रसिद्ध कोई सुभट तो महावलयमें भी भयंकर तलवार तौलने लगा। बैरीके बलको भंग करनेवाले, रणके हर्षसे फूले अंगवाले, किसी भटने अपना माथा ऊँचा ५ तान दिया, मानो काल ही आ गया हो। नवीन मेघके समान आभावाले किसी ( काले ) भटका शरीर ( हर्षसे फूल जानेके कारण ) कवचमें ही नहीं समा रहा था। मुसल द्वारा रिपुका दलन करने हेतु किसी कुशल भटने सहसा ही मदोन्मत्त श्वेतांग हाथीको देवों एवं विद्याधरोंके मनको हरण करनेवाले गुडसारि-कवचसे सज्जित कर दिया। खरोंसे भूमिरजको खोदनेवाले उत्तम घोड़ोंको पक्खर नामक कवचसे सज्जित कर दिया गया । दृढ़तर चक्रवाले रथोंको ध्वजाओंसे १० अंकित कर तथा आयुधोंसे भरकर उनमें घोड़े जोत दिये गये। भूमिगत ( पैदल सेनाके ) मनुष्य भी कवचोंसे युक्त होकर तथा विविध बाणोंको लेकर प्रभुके आवासके प्रांगणमें पहुँचे। किसीकिसीने अपना चित्त एकाग्र कर कर-कमलोंमें गुण ( ज्या ) रूपी लक्ष्मीको नवाकर ( झुकाकर ) उत्तम वंस (बाँस ) से बने हुए अपने समान ही नहीं टूटनेवाले धनुष धारण कर लिये। घत्ता-यशस्वी भट कवचोंसे सज्जित होकर तथा अपने योग्य शस्त्रोंको धारण कर प्रभुकी १५ कृपाओंका स्मरण कर अपने स्वामीके सम्मुख उपस्थित हो गये ॥१०१।। राजा प्रजापति, ज्वलनजटी, अर्ककीति और विजय युद्धक्षेत्रमें पहुँचनेके लिए तैयारी करते हैं दुवई राजाने सर्वप्रथम स्वयं अपने ही हाथों द्वारा आपत्तियोंके निवारक पुष्प, वस्त्र, विलेपन, ताम्बूल आदिके द्वारा सेवकोंको सम्मानित किया। अत्यधिक गेरुसे रंगे जानेके कारण सन्ध्याकालीन मेघके समान प्रतीत होनेवाले उत्तङ्ग हाथियोंपर सवार होकर निष्ठुर योद्धागण अपने हाथोंसे सूर्यका स्पर्श करते हुए निकले । सुन्दर कवचोंको दृढ़ता पूर्वक बाँधे हुए कवचवाले असंख्य भटोंसे युक्त उत्तम घोड़ों द्वारा परिवेष्टित ५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001718
Book TitleVaddhmanchariu
Original Sutra AuthorVibuha Sirihar
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Religion
File Size9 MB
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