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वड्डमाणचरिउ रसणावस गउ दाढाकरालु
पय-पाणकरणु इच्छइ विरालु। ननियइ दुम्मइ दिढ-दंड-घाउ अइ-दूसहयरु णिद्दलिय-काउ । सोसइ कहणिय-पोरिस-सहाउ पयडइ अजुत्तु सुवणहँ वराउ । ण कयावि जेण णारायराइ
संधंतु निहालिउ रण अराइ । घत्ता-किं संगरे कोवि वयण सरिसु णिय विक्कमु संदरिसइ ।
जिह कण्ण-भयंकर गडयडइ तिह किं जलहरु वरिसइ ॥१९॥
दुवई णिय-णारी-णिवासि जिह रण-कहवि रइज्जइ सइच्छए ।
को भू-भंग-भीम-भड-भीसणु सिंह वीरमुहं पेच्छए । साहिउ असेसु जेणारि-वग्गु णिम्मल-जसेण धवलिउ धरग्गु । रंजिउ गुणेहिं वुहयणु सवंधु . समरंगण भरे उड्डिउ सर [प] वंधु । गंभीरिमाई निज्जिउ समुदु दंडिउ वलेण खलु पिसुणु खुदु । तणु-तेएँ नित्तेइउ दिणिंदु
णिय-बल-भरेण चप्पिउ फणिंदु । वंदियण-रोरु दाणेण छिण्णु
सयरेहिं पर-णर-मण-मंतु-भिण्णु । तारिसु जुत्तउ ण णिरुत्तु अण्णु मणिमय कुंडल मंडिय सुकण्णु । तिक्खण-धारा-किरणोलि-दित्तु कंपाविय-महिहर-खयर-चित्तु । जक्ख हि रक्खिउ हय-वइरि-चक्कु किं ण मुणहिं तहो सहसारु चक्कु । इय वजरंतु विणिवारि दूउ
पभणइ पुरिसोत्तमु सइँ सरुउ । तहो महु विसेसु विणु संगरेण ण मुणिज्जइ इय भणि मुक्कु तेण । गउ माणवि वज्जिउ दूउ जाम तक्खणे तहो आणइँ जुत्ति ताम ।
धत्ता-गंभीर-घोस रण-भेरि-हय सयलवि दिसपडिसद्दिय ।
__ भय-वेविर-विग्गह गयणयर णरवर चित्त-विमद्दिय ॥१०॥
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६. १. D. सरवंधु।
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