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________________ ४. २४. ८ ] हिन्दी अनुवाद १०७ घत्ता — निर्झर जलके निर्मल-कण बिन्दुओंको धारण करनेवाली, हाथियों द्वारा मग्न अगुरु वृक्षोंसे सुवासित तथा पर्वतोंके आश्रय में बहनेवाली मन्द गुणाश्रित वायु उस राजा प्रजापतिकी सेनाको सुख प्रदान कर रही थी ॥ ९२ ॥ २३ त्रिपृष्ठ अपनी सेनाके साथ रथावर्त शैल पर पहुँचता है मलया उत्तम गजोंके दन्तों एवं हरिणोंसे कान्त वह अटवी प्रस्थान करती हुई उस उत्साही सेनाको (सुख) प्रदान कर रही थी । ५ पीनस्तनी शबरियों के रूपको निहारती हुई, पर्वत तथा नदियोंके किनारोंको विदलित करती हुई, तरुवरोंके सघन वनको चूर-चूर करती हुई, सरोवरोंके जलोंको कीचड़-युक्त करती हुई, रथरथांगों ( चक्रों ) के शब्दोंसे ( दिशाओंको) पूरती हुई, तथा जनपदों के श्रुत-विवरों ( कानों ) को भेदती हुई, धूलिसे गगनांगनको छाती हुई, श्रेष्ठ द्विरदों ( गजों के माध्यम ) से घनश्रीको दर्शाती हुई, चपल तुरंगोंसे पृथिवीको लाँघती हुई, प्रचुर आयुधोंकी दीप्तिसे दीप्त तथा इस प्रकार अपने प्रभु को विस्तारती हुई, अरिजनोंके मनमें भयको फैलाती हुई, गुणज्ञोंमें सर्वप्रथम - विजयके साथ हरि - त्रिपृष्ठ द्वारा नियन्त्रित प्रयाणोंसे शत्रुजनोंके अहंकारको चूर करती हुई वह सेना, अनेक प्रकारके सेवकजनों द्वारा सेवित प्रतिपक्षी सेनासे व्याप्त विपुल रथावर्त नामक पर्वतके एक १० सानु प्रदेशमें पहुँची । वहाँ वह केशव - ( त्रिपृष्ठ ) इस प्रकार पहुँचा, मानो देवों सहित इन्द्र ही आ पहुँचा हो । विपुल जल, घास, वृक्षराजि आदिसे सुखकारी उस पर्वतपर सेनापतिके आदेशसे समस्त सेना रुक गयी । धत्ता - तथा पथके श्रमसे थकी हुई निर्भीक हरि ( त्रिपृष्ठ ) की उस सेनाने नदीके किनारे अपना पड़ाव डाल दिया । गजगामी स्वामीके ( आनेके ) साथ ही किंकरजनोंने भी वहाँ डेरा १५ डाल दिया ॥ ९३ ॥ Jain Education International १५ २४ रथावतं पर्वतके अंचलमें राजा ससैन्य विश्राम करता है मलया तत्काल ही पट-मण्डप खड़े कर दिये गये तथा अरिजनोंको क्षुब्ध कर देनेवाली 'गुहार' ( युद्धमें प्रयाण करने हेतु ) ध्वनि कर दी गयी । ( वहाँपर ) वणिक्जनोंने विविध आवश्यक एवं सुहावनी वस्तुओंका एक बाजार फैला दिया । निर्भीक सेवकोंने उस सैन्य नगर स्थित लोगोंके अपने-अपने डेरोंके सम्मुख ( अपने-अपने विशेष ) चिह्न ( डेरा पहचानने हेतु ) खड़े कर दिये तथा उनके सामने गुड़ आदि भारी वस्तुओंके ५ ढेरके ढेर उतारकर, आयुध सहित चामर सदृश ध्वज पताकाएँ लगाकर, हाथियोंके सुन्दर गण्डस्थलोंवाले बच्चोंके साथ हाथियोंको भी डुबकियाँ लगवा-लगवाकर वन्यवृक्षोंसे बाँध दिया, घोड़ों परियाण ( रक्षण ) खलीन ( लगाम ), आदि भारोंको उतारकर ( थकाव मिटाने हेतु ) जमीन में लिटवाकर एवं मनोहर ( शीतल ) जल पिलाकर श्रम - जल-कणों ( पसीना ) से पूरित For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001718
Book TitleVaddhmanchariu
Original Sutra AuthorVibuha Sirihar
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Religion
File Size9 MB
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