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asमाणचरिउ
घत्ता - निज्झर - जल - पविमल-कण धरणु करि भग्गागरु वासिउ । गिरिमासउ हरु करइ सुहु सिण्णहो मंद गुणासिउ || १२ ||
गवर दंत अडवि सचित्त हो
घण थण सवरि रूउ नियंतउ तरुवर- सघण-वणइँ चूरंतउ रह-रहंग- रावहिं पूरंतउ गयणंग छायंत उ तरल - तुरंगहि महि लंघंतउ इणिय पहुवलु वित्थारंतउ हरि परिमियहिं पयाणिहिं पढमउ पडि पियणाठिय साणु-पएस विउल-रहावत्तायले केसउ बहु जल-तिण-तरु-राइय- धरणिह
पड - मंडविया
वणि यहिं वित्थारिउ आवणु णिय णिय घरे चिन्हइँ निब्भिञ्चहिँ उत्तारिवि गुड गरुव समुहवड . कय जल-गाह करडि करिवालहि ग-परिपाण - खलिण-परिभार हूँ सम-जल-लव- पूरिय सयलंग हूँ
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घत्ता — पह-सम-ह्उ गय-भउ हरिहबलु तडिणि-तीरि-आवासिउ । गय-गामि सामिहे समई किंकरयणु आवासिउ ॥ ९३ ॥
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मलया
हरिण कंत हूँ | दिति वयंत हो । गिरि-तीरणि-कूलइँ विदलंत । सरवर-जलु कद्दमु विरयंतउ । जणवय-सुइ-विवरइँ भिदंत । वर दुरयहिं घण- सिरि दरिसंत । उरा उह- दित्ति दिप्पंतउ । अरियण-मण-भउ पइसारंतउ । मिहियाहियमाणस - गुणमउ । वहु विह सेवय- जण-कय- वास । संपत्तउ णं सामरु वासउ । सेणावइ-वयणें सुह-करिणि ।
[ ४. २२.१३
२४
मलया
तखर्ण रइया । अरियण खुब्भिय । णाणावत्थु-चएण सुहावणु । पुर गएहिं समुब्भिय भिच्चिहिँ । साउह चामर सारिस धयवड । वेणरुक्खे निवद्ध सुभालेहिँ ।
विपी सलिल मणहार हूँ । वीसमियइँ बढाइँ तुरंग हूँ ।
२३. १. D. रेणुहिं गयणंगणुं । २. D. प्रतिमें "सामिहे तहि सम ...." पाठ मिलता है । २४. १. D. विं । २. D. J. V. लिं' ।
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