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________________ 5 10 5 १०६ asमाणचरिउ घत्ता - निज्झर - जल - पविमल-कण धरणु करि भग्गागरु वासिउ । गिरिमासउ हरु करइ सुहु सिण्णहो मंद गुणासिउ || १२ || गवर दंत अडवि सचित्त हो घण थण सवरि रूउ नियंतउ तरुवर- सघण-वणइँ चूरंतउ रह-रहंग- रावहिं पूरंतउ गयणंग छायंत उ तरल - तुरंगहि महि लंघंतउ इणिय पहुवलु वित्थारंतउ हरि परिमियहिं पयाणिहिं पढमउ पडि पियणाठिय साणु-पएस विउल-रहावत्तायले केसउ बहु जल-तिण-तरु-राइय- धरणिह पड - मंडविया वणि यहिं वित्थारिउ आवणु णिय णिय घरे चिन्हइँ निब्भिञ्चहिँ उत्तारिवि गुड गरुव समुहवड . कय जल-गाह करडि करिवालहि ग-परिपाण - खलिण-परिभार हूँ सम-जल-लव- पूरिय सयलंग हूँ Jain Education International घत्ता — पह-सम-ह्उ गय-भउ हरिहबलु तडिणि-तीरि-आवासिउ । गय-गामि सामिहे समई किंकरयणु आवासिउ ॥ ९३ ॥ २ २३ मलया हरिण कंत हूँ | दिति वयंत हो । गिरि-तीरणि-कूलइँ विदलंत । सरवर-जलु कद्दमु विरयंतउ । जणवय-सुइ-विवरइँ भिदंत । वर दुरयहिं घण- सिरि दरिसंत । उरा उह- दित्ति दिप्पंतउ । अरियण-मण-भउ पइसारंतउ । मिहियाहियमाणस - गुणमउ । वहु विह सेवय- जण-कय- वास । संपत्तउ णं सामरु वासउ । सेणावइ-वयणें सुह-करिणि । [ ४. २२.१३ २४ मलया तखर्ण रइया । अरियण खुब्भिय । णाणावत्थु-चएण सुहावणु । पुर गएहिं समुब्भिय भिच्चिहिँ । साउह चामर सारिस धयवड । वेणरुक्खे निवद्ध सुभालेहिँ । विपी सलिल मणहार हूँ । वीसमियइँ बढाइँ तुरंग हूँ । २३. १. D. रेणुहिं गयणंगणुं । २. D. प्रतिमें "सामिहे तहि सम ...." पाठ मिलता है । २४. १. D. विं । २. D. J. V. लिं' । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001718
Book TitleVaddhmanchariu
Original Sutra AuthorVibuha Sirihar
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Religion
File Size9 MB
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