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४. २२. १२ ]
हिन्दी अनुवाद
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विद्याधर तथा नर- सेनाओंका युद्ध हेतु प्रयाण
मलया
रज, सेनाकी धूलिके भयसे भूतलको छोड़कर नभस्तलमें चली गयी और वहाँ जाकर उसने व्याकुल होकर विकसितवदना विद्याधर सेनाको विधूलित कर दिया ।
परस्परमें एक दूसरेको देखने में प्रवृत्त वे सभी शूरवीर नर अपने-अपने हृदयों में आश्चर्यचकित थे । पोदनपुर-नरेशकी सेना ( विद्याधरोंको देखने हेतु ) अपना मुख ऊँचा कर तथा विद्याधरोंकी सेना ( पोदनपुरकी सेनाको देखने हेतु ) अधोमुख किये हुई चल रही थी । खेचराधिपने प्रवर-विमान में चढ़कर तथा आकाश मार्ग में जाते हुए देखा कि बल एवं सौन्दर्यमें अपने समान तथा जाति, बल एवं द्युतिमें कमलोंको भी जीत लेनेवाले गाम्भीर्यादि समस्त गुणोंकी सीमा -स्वरूप, वज्ररेखाके समान ( तेजस्वी ), तथा अति सौम्य एवं अतिभीम, अपने दोनों ही ( विजय एवं त्रिपृष्ठ ) पुत्रोंके आगे-आगे प्रजापति - नरेश चल रहे थे, ऐसा प्रतीत होता था मानो नय एवं पराक्रमके आगे महान् प्रशम ( शान्ति एवं कषायों का अनुद्रेक ) ही चल रहा हो ।
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अपनी-अपनी कामिनियोंके साथ विद्याधरों तथा विकसित मुखवाले शत्रु विद्याधरोंने एक ऊँट देखा i ( ठीक है आप ही ) कहिए कि कान्ति-विमुख होनेपर भी कौतूहलकारी वस्तु क्या अपूर्व सुखकारी नहीं होती ? नूपुरोंसे जटिल अलंकृत, एवं मनोहर शिविकापर आरूढ़ नरनाथोंके अन्तःपुरको मार्ग में चलते हुए पामरजनोंने देखा तथा तत्काल ही परस्पर में कहने लगे
घत्ता - "अनेक कहार मिलकर परिजनोंको तथा बड़े-बड़े सुन्दर चरुवा, कलश, कड़ाही १५ लेकर शीघ्रता से लीला-क्रीड़ा पूर्वक जा रहे हैं । " ॥९१॥
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नागरिकों द्वारा युद्ध में प्रयाण करती हुई सेना तथा राजा प्रजापतिका अभिनन्दन तथा आवश्यक वस्तुओंका भेंट स्वरूप दान
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मलया
करीशको देखकर तथा अत्यन्त भयभीत होकर अतिचपल अंगवाले तुरंग तत्काल ही भागे । वसुनन्दा नामक खड्ग से विभूषित हाथोंवाले महाअभिमानी उद्भट भट नृपतिके घोड़े के आगे-आगे दौड़ रहे थे। शीघ्रतामें वे लता - प्रतानोंमें गुल्मों को भी लाँघते जाते थे । मार्ग में अत्यन्त
पूर्व दौड़ते हुए प्रजापति नामक उस धरणीधरसे 'स्वामिन् रक्षा कीजिए, रक्षा कीजिए', इस प्रकार कहती हुई तथा सिर झुकाकर प्रणाम करती हुई महिलाएँ भेंटस्वरूप प्रदान करने हेतु ५ गोरसको ढो-ढोकर ला रही थीं । पामरजन बारम्बार उसे देख रहे थे ( और कह रहे थे ) कि हमारे स्वामी के शत्रु - नगरका घिराव करनेवाले ये सब मनोहर भट हैं, यह घण्टोंके रवसे मुखरित गजोंकी घटा है । अपनी चपल - गति से आश्चर्यचकित करनेवाले ये उत्तम घोड़े हैं । ये क्रमेलक ( ऊँट ) हैं और ये कामुकजनोंके मनको उल्लसित करनेवाली विलासिनियाँ हैं । अनेक राजाओंसे वेष्टित तथा अपने प्रतीन्द्र ( नारायण ) पुत्र ( त्रिपृष्ठ ) सहित सिंहके समान यह राजा प्रजापति है । इस प्रकार कहते हुए जनपदके लोग उनका आदर कर रहे थे तथा आश्चर्यचकित होकर कटक ( सेना ) की श्री - शोभाका निरीक्षण कर रहे थे ।
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