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________________ ४. २२. १२ ] हिन्दी अनुवाद २१ विद्याधर तथा नर- सेनाओंका युद्ध हेतु प्रयाण मलया रज, सेनाकी धूलिके भयसे भूतलको छोड़कर नभस्तलमें चली गयी और वहाँ जाकर उसने व्याकुल होकर विकसितवदना विद्याधर सेनाको विधूलित कर दिया । परस्परमें एक दूसरेको देखने में प्रवृत्त वे सभी शूरवीर नर अपने-अपने हृदयों में आश्चर्यचकित थे । पोदनपुर-नरेशकी सेना ( विद्याधरोंको देखने हेतु ) अपना मुख ऊँचा कर तथा विद्याधरोंकी सेना ( पोदनपुरकी सेनाको देखने हेतु ) अधोमुख किये हुई चल रही थी । खेचराधिपने प्रवर-विमान में चढ़कर तथा आकाश मार्ग में जाते हुए देखा कि बल एवं सौन्दर्यमें अपने समान तथा जाति, बल एवं द्युतिमें कमलोंको भी जीत लेनेवाले गाम्भीर्यादि समस्त गुणोंकी सीमा -स्वरूप, वज्ररेखाके समान ( तेजस्वी ), तथा अति सौम्य एवं अतिभीम, अपने दोनों ही ( विजय एवं त्रिपृष्ठ ) पुत्रोंके आगे-आगे प्रजापति - नरेश चल रहे थे, ऐसा प्रतीत होता था मानो नय एवं पराक्रमके आगे महान् प्रशम ( शान्ति एवं कषायों का अनुद्रेक ) ही चल रहा हो । १० अपनी-अपनी कामिनियोंके साथ विद्याधरों तथा विकसित मुखवाले शत्रु विद्याधरोंने एक ऊँट देखा i ( ठीक है आप ही ) कहिए कि कान्ति-विमुख होनेपर भी कौतूहलकारी वस्तु क्या अपूर्व सुखकारी नहीं होती ? नूपुरोंसे जटिल अलंकृत, एवं मनोहर शिविकापर आरूढ़ नरनाथोंके अन्तःपुरको मार्ग में चलते हुए पामरजनोंने देखा तथा तत्काल ही परस्पर में कहने लगे घत्ता - "अनेक कहार मिलकर परिजनोंको तथा बड़े-बड़े सुन्दर चरुवा, कलश, कड़ाही १५ लेकर शीघ्रता से लीला-क्रीड़ा पूर्वक जा रहे हैं । " ॥९१॥ Jain Education International २२ नागरिकों द्वारा युद्ध में प्रयाण करती हुई सेना तथा राजा प्रजापतिका अभिनन्दन तथा आवश्यक वस्तुओंका भेंट स्वरूप दान १०५ मलया करीशको देखकर तथा अत्यन्त भयभीत होकर अतिचपल अंगवाले तुरंग तत्काल ही भागे । वसुनन्दा नामक खड्ग से विभूषित हाथोंवाले महाअभिमानी उद्भट भट नृपतिके घोड़े के आगे-आगे दौड़ रहे थे। शीघ्रतामें वे लता - प्रतानोंमें गुल्मों को भी लाँघते जाते थे । मार्ग में अत्यन्त पूर्व दौड़ते हुए प्रजापति नामक उस धरणीधरसे 'स्वामिन् रक्षा कीजिए, रक्षा कीजिए', इस प्रकार कहती हुई तथा सिर झुकाकर प्रणाम करती हुई महिलाएँ भेंटस्वरूप प्रदान करने हेतु ५ गोरसको ढो-ढोकर ला रही थीं । पामरजन बारम्बार उसे देख रहे थे ( और कह रहे थे ) कि हमारे स्वामी के शत्रु - नगरका घिराव करनेवाले ये सब मनोहर भट हैं, यह घण्टोंके रवसे मुखरित गजोंकी घटा है । अपनी चपल - गति से आश्चर्यचकित करनेवाले ये उत्तम घोड़े हैं । ये क्रमेलक ( ऊँट ) हैं और ये कामुकजनोंके मनको उल्लसित करनेवाली विलासिनियाँ हैं । अनेक राजाओंसे वेष्टित तथा अपने प्रतीन्द्र ( नारायण ) पुत्र ( त्रिपृष्ठ ) सहित सिंहके समान यह राजा प्रजापति है । इस प्रकार कहते हुए जनपदके लोग उनका आदर कर रहे थे तथा आश्चर्यचकित होकर कटक ( सेना ) की श्री - शोभाका निरीक्षण कर रहे थे । १४ For Private & Personal Use Only १० www.jainelibrary.org
SR No.001718
Book TitleVaddhmanchariu
Original Sutra AuthorVibuha Sirihar
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Religion
File Size9 MB
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