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________________ 5 १०२ वड्डमाणचरिउ [४. १९.३हरि-वाहिणि-वेयवइ विसुद्धउ इय विज्जउ पंच-सय-पसिद्धउ। समरंगणे भंजिय अरिवर भुव सत्तेहि दिणेहिं ससेस वि वस हुव । विजयागुउ विज्जालंकरियउ णर-खेयर-रायहिँ धुरे धरियउ। णीसेसहँ णहयरहँ णरिंदह अलि पवियारिय-कूर-करिंदहँ । एत्थंतर तहो सिरि इच्छंतहो अरिहणणत्थु समर गच्छंतहो । उब्भियतोरण-धय-णिय-णयरहो दाणाणंदिय-णरवर-खयरहो। रयण-मया-हरणालंकरियहो णिय-असेस-सेणा-परियरियहो । मंगलयर-सुह-सउण-समिद्धहो णीसेसावणि वलए पसिद्धहो । मंदिरग्गय-सीमंतिणि-यणु भूभंगेहिं पथंभिय-सुरयणु । लावंजलि तहो सहुँ णिय णयणहिं सव्वत्थ वि परिधिवइ समयणहिं । घत्ता-दुज्जेयहो एयहोणं मुवणि अमल कित्ति वित्थारइ । परचक्कहो थिक्कहो समरमुहोणाई तेउ विणिवारइ ॥ ८९ ।। 10 २० मलया करि धेय पंतिहिं गयणे घुलंति हिं। केवलु णहयलु पिहिउ ण गयमलु। पर-नर-वर-दूसह-चक्कवइहे तेउ वि सयलु कुलंवर भवइहे । हिंसंतहँ तुंगंग-तुरंगहँ चवलत्तणजिय जलैहि-तरंगहँ । खर-खुर-हय-महिरेणुहि नग यणु मइलिउ अहियजसो हुवि सवयणु ।। सेणा-पय-भर-पीडिय-हँ ल्लिय धरणि नै परणिय ठाणहो चल्लिय । हरि हिययहो लच्छि वि पवणाहय । निम्मलाहु वल्लिवि भज्जिवि गय । वियलिय मयजल-निज्झर-वारण पडिवारण-मण-दप्प-णिवारण । वारण वाल-वसेण विणिग्गय णं खय-समए मिलिय मह-दिग्गय । तिक्खण-खुर-खय-खोणि अणेयइँ मणहरकंठाणेय समेयई। फेणाविल-वयणई तुंगंगई सासवार-संचलिय-तुरंगई। विविहाउह-परिपूरिय-रहवरु फेरिय रहियहि जोत्तिय-हयवर । समणे समिच्छिय-सुंदर-वाहण चडिवि झत्ति रण-भर-णिव्वाहण । घत्ता-पर-महि-हर महिहर अवर पुणु धवल-छत्त-हय-रवियर । अणु णिग्गय-संगय तहो सयल असि-मंडिय-दाहिण-कर ।। ९० ।। 10 15 २. D. मंदिरग्ग गय। २०. १.J. V. धरय । २. J. V.त । ३. D.लि । ४. J. ल । ५.J. ल । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001718
Book TitleVaddhmanchariu
Original Sutra AuthorVibuha Sirihar
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Religion
File Size9 MB
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