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वडमाणचरिउ
[ ४. १५. १३घत्ता-परितप्पइ कुप्पइ जो पुरिसु णिरणिय-हियइ सकारणु।।
सो गुणहरु मणहरु उवसमई अणुणएण मय-धारणु ।। ८५॥
मलया अणु अंतरुसहो
उवसमु पुरिसहो। 'किर एकेणं
वप्प णएण। अइकुवियहो हिउ-पिउ-वयणुल्लिउ कोव-णिमित्तु हवइ पञ्चिल्लिउ । सिहि-संतत्त-तुप्प-णिवडंतउ
णीरु जाइ जलणत्त तुरंतउ । अहिमाणिहे पुरिसहो पिउ हासिउ अह सो होइ हियइ असुहासिउ । णउ पुणु तविवरीयहो रामें किं अणुकूलु होइ खलु साम। सिहि-संतत्तउ जाइ मि उत्तणु जल सिंचिउ लोहु खरत्तणु । इय रिउ पीडिउ विणयहो गच्छइ इयरह खलु न कयावि नियच्छइ । वेयायरहिं रिसिय जयवंतहिं
सप्पुरिसहँ णिमित्त मइवंतहिं । विणउ सबंधिवि धरिय कुलक्कमु पाण-हरणु पडिवक्ख-परक्कमु । अइ तुंगो वि जणेण खमाहरु लहु लंघिज्जइ फंसिय-जलहरु । कह ण होइ अहवा सुहवारणु णरहो खमा-परिभूइह कारणु । घत्ता-दुब्भेएँ तेएँ विणु रवि वि लहु अच्छवइ दिणक्खए ।
ते ण मुवइ महमई तेयसिरि जउ इच्छंतु सपक्खए ।। ८६ ॥
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अहिउ णिसग्गउ ण समइ सामें सो सामें पज्जलइ णिरारिउ ता गज्जइ मइमत्तु करीसरु जाण पुरउ पेक्खइ पंचाणणु काणणे जेण करिंदु णिहालिवि तेण सवास गुहा-मुहे पत्तउ तुम्हहँ तणउ वयणु उल्लंघेवि
मलया
वइरें लग्गउ। पयणिय-कामें। वडवाणलु व जलेहि अवारिउ । णिल्लूरिय स-भसल णलिणीसरु । परिविहुणिय-केसरु भीमाणणु । णिहणिज्जइ णहरहिं ओरालेवि । किं सो परितज्जियइ पमत्तउ । किण्ण वप्प समणे णासंघिवि ।
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१६. १. D. अत्तरु । २. D. कीरइकेणं। ३. D. खमं । ४. D. फं। ५. D. प्रति में ते ण मुवइ मइ
तेयसिरि पाठ है। १७. १. D. आं। २. V. नं। ३. J. V. सहास ।
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