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________________ ४. १७.८] हिन्दी अनुवाद घत्ता-जो पुरुष अपने हितके निमित्तविशेषसे क्रोध करता है अथवा परिताप करता है, तब उस गुणगृह, मनोहर एवं अहंकारी पुरुषको निश्चय ही अनुनय-विनय पूर्वक शान्त किया जा सकता है ।।८५॥ १५ सामनीतिके प्रयोग एवं प्रभाव मलयविलसिया "किन्तु जो पुरुष बिना किसी निमित्तके ही हृदयमें रुष्ट हो जाता है, उसे किस विशेष . नीतिसे शान्त करना चाहिए ? अत्यन्त क्रोधी व्यक्तिके लिए हितकारी प्रिय-वचन उलटे उसके क्रोधके निमित्त ही बनते हैं। अग्निसे सन्तप्त धीमें यदि पानी पड़ जाये, तो वह तुरन्त ही अग्नि बन जाता है। अभिमानी पुरुष, यदि वह हृदयसे सुकोमल है, तभी उसे प्रिय वचन प्रभावित कर सकते हैं, किन्तु जिसका ५ हृदय कर्कश है, उसके लिए रम्य सामनीति क्या अनकल पड़ सकती है ? अग्निसे तपाये जानेपर ही लोहा मृदुताको प्राप्त होता है, किन्तु जलसे सिंचित कर देनेपर वही कर्कश हो जाता है। इसी प्रकार शत्रु शत्रु द्वारा पीड़ित होकर ही नम्र बन सकता है, अन्य किसी उपायसे नहीं। वेदोंका आचरण करनेवाले ऋषियों, नयनीतिवन्तों एवं मतिवन्तोंने सत्पुरुषोंके निमित्त दो उपाय बताये हैं-सम्बन्धीजनों ( बन्धु-बान्धवों) के प्रति विनय धारण कर कुलक्रमका निर्वाह अथवा, प्राणोंका १० अपहरण करनेवाले शत्रुके प्रति पराक्रम-प्रदर्शन। गगनचुम्बी क्षमाधर-पर्वत ( पक्षमें क्षमाशान्तिको धारण करनेवाला अथवा राजा ) उन्नत (पक्षमें प्रतिष्ठित ) होनेपर भी लोगों द्वारा वह सहज ही लाँघ लिया जाता है । ठीक ही है, वह क्यों न लाँघा जाये ? ( कहा भी गया है-) 'पुरुषके लिए क्षमागुण, सुखका वारक तथा पराजयका कारण होता है। पत्ता-दुर्भेद्य तेजके बिना रवि-सूर्य भी दिवसावसानके समय अस्ताचलगामी हो जाता १५ है। इसीलिए कोई भी महामति यदि अपने पक्षकी विजय चाहता है, तो वह अपनी तेजस्विताको न छोड़े ॥८६॥ राजकुमार विजय सामनीतिको अनुपयोगी सिद्ध करता है मलया "स्वभावसे ही अहितकारी तथा शत्रुकर्मों में लगा हुआ व्यक्ति प्रेम अथवा सामनोतिके प्रदर्शनसे शान्त नहीं हो सकता। बल्कि सामनीतिसे वह उसी प्रकार प्रचण्ड हो जाता है, जिस प्रकार वडवानल अपार जल राशिसे । भ्रमर सहित श्रेष्ठ कमलिनीको छिन्न कर देनेवाला हाथी मदोन्मत्त होकर तभी गरजता है जबतक कि वह दूसरों (हाथियों) के विदीर्ण कर देनेके कारण अस्त-व्यस्त केशर (जटा) ५ तथा भयानक मुखवाले पंचानन–सिंहको अपने सम्मुख नहीं देखता। जो करीन्द्र सिंहके नखों द्वारा वनमें चारों ओरसे खोज-खोजकर मारा जाता हो वही प्रमत्त करीन्द्र जब सिंहके निवासस्थान गुफा-मुखपर आ गया हो, तब क्या वह उस (सिंह ) के द्वारा छोड़ दिया जाता है ? आपके वचनों ( यद्यपि वे अनुल्लंघनीय हैं तो भी उन) का उल्लंघन कर सामनीति द्वारा उस अश्वग्रीवसे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001718
Book TitleVaddhmanchariu
Original Sutra AuthorVibuha Sirihar
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Religion
File Size9 MB
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