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४.१५.१२]
हिन्दी अनुवाद
सामनोतिका प्रभाव
मलयविलसिया किसी भी क्रोधित शत्रुको प्रिय-वाणी बोलकर उसपर साम-सान्त्वनाका उपयोग कीजिए और द्रव्यार्जन कीजिए॥
हे नृप, प्रथम-सामनीति बुधजनोंके लिए कही गयी है, इसे आप अपने मनमें भलीभांति समझ लीजिए। जलचरोंसे युक्त कीचड़-मिश्रित जल कनकफलके बिना निर्मल नहीं हो सकता। कर्कश-वाणी बोलनेसे क्रोधका विस्तार होता है, जबकि कोमल-वाणीसे वह (क्रोध ) उपशम ५ धारण करता है।
जिस प्रकार दावानल पवनसे बढ़ता है किन्तु मेघों द्वारा छोड़े गये जलसे वह शान्त होता है, जो सामनीति द्वारा शान्त किया जा सकता है, उसके ऊपर गुरु-शस्त्र नहीं छोड़ा जाता। हे नरेन्द्र, अरिजनोंको सामनीतिके उपायों द्वारा साध्य करना चाहिए अन्य उपायोंसे क्या प्रयोजन ? बुधजनों द्वारा ऐसा कहा गया है कि यदि क्रियाशील, दुष्टको सामनीतिसे साध लिया जाये, तो १० उसके परिपमन ( विपरीत ) हो जानेपर भी वह विकारयुक्त नहीं हो सकता। भीषण-अग्निको जलसे शान्त कर देनेपर फिर क्या वह पुनः जलनेकी चेष्टा करती है ? कुलीन महापुरुष यदि क्रोधित भी हो जाये, तो भी उनका मन कभी भी विकृतिको प्राप्त नहीं होता। समुद्रका जल क्या फूसकी अग्निसे उष्ण किया जा सकता है ?
घत्ता-जो नयवान्, इन्द्रिय-जयी तथा आत्म-संयमी है, उसका शत्रु कोई नहीं होता। जो १५ पथ्य-भोजन करता है अथवा जो श्रुत-सम्मत भाषण करता है, क्या वह रोगसे (पक्षमें संसार रूपी पीड़ासे ) पीड़ित हो सकता है ? ।।८४।।
सामनीतिके प्रयोग एवं प्रभाव
मलयविलसिया यदि दूधको कच्चे घड़ेमें रख दिया जाये, तो क्या वह सहज शीघ्र ही दही-भावको प्राप्त हो सकता है ?
सम्मुख उपस्थित एवं उपलक्षित शत्रु भी अत्यन्त कोमल वचनोंसे धीरे-धीरे भेद ( फोड़) लिया जा सकता है । क्या नदियोंका प्रवाह-वेग महान् पर्वतोंका भेद करके उन्हें विदीर्ण नहीं कर डालता? तेजस्विता भी शभ गणोंके भाजनस्वरूप मद-गणके साथ ही सनातन ( शाश्वत ) रह पाती है। घर-पिण्डको प्रकाशित करनेवाला दीपक स्नेह-तेल रहित होनेपर भी क्या बत्तीके बिना बुझ नहीं जाता ? अतः उस हयग्रीवके साथ निश्चय ही सामनीतिका व्यवहार कीजिए, किसी अन्य नीतिका व्यवहार नहीं।"
यह कहकर जब ( मन्त्रिवर ) सुश्रुतने विराम लिया तब नयगुणका भाजन तथा विजयरूपी लक्ष्मीका पति (त्रिपृष्ठका बड़ा भाई-विजय) क्रोधसे अपनी आँखें लाल करके मुँह ऊपर उठाकर १० बोला- "सम्बन्ध रहित अक्षर तो तोतेको भी नहीं पढ़ाये जा सकते ? किन्तु विद्वानोंने नय-दक्ष उसे ही कहा है, जो शास्त्रकी बातको ही अपने कथन द्वारा सार्थक रूपमें प्रकाशित करे।
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