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________________ वड्डमाणचरिउ [४. १४.१ १४ मलया कुविय-रिऊणं पिउ चविऊणं। सामु रइज्जइ दव्वु समिज्जइ। पढमु सामु बुहयणहँ पउत्तउ णिय-मणे णिव परियाणि निरुत्तउ । विणु करवयं कद्दमिउं ण पाणिउं होइ पसण्णउं जलयर-माणिउं । खर-वयणेण कोउ वित्थरियइ कोमलेण उवसामिवि धरियइ । जिह पवणेण दवाणलु णीरें घण मुक्कें णिय जुइ-जियखीरें। जो सामेण वि उवसामिजइ तत्थ ण वप्प सत्थु परिलिज्जइ। अरियणे साम-सज्झ उप्पायहिं कि णरेंद इयरेहिं अणेयहिँ । परिणामे वि ण परु विक्किरियह जाइ साम-साहिउ खलु-किरियह । सलिल समिउँ धूमावलि-भीसणु किं पुणरवि पज्जलइ हुवासणु । मणु न जाइ कुवियहों वि महंतहो विकिरियहे कयावि कुलवंतहो। जलणिहि-सलिलु ण परताविजइ तिण हउ लुक्कहि वुहहिं भणिजइ । घत्ता-णयवंतउ दंति उण करणहिँ जो तहिं रिउ णो' उपज्जइ। पच्छासणु भासणु सुय सयह किं रोयहिँ पीडिज्जइ ॥ ८४ ।। 10 दुद्ध आम भायणे किं किउ लहु वप्प कोमलेणावि परिट्ठिउ किन्न सेलु मह तीरु णिवेएँ तेउ मिउत्तणु सहिउ सणाणणु रहिउ सतेल्ल दसीएण दीवउ तेण जे तत्थु सामु विरइज्जइ इय भणि सुस्सुउ विरमिउ जावेहि आहासइ कोवारुण-लोयणु किण्ण सुओवि पढाविउ यारिसु सो णय-दच्छु बुहेहि समासिउ मलया उवगच्छइ दहिभावहो असुलहु । रिउ कमेण भिज्जइ उवलक्खिउ । पवियारिज्जइ विरइय भेएँ । होइ असंसउ सुह-गुण-भायणु । किं न उणीवइ घड-पिड-दीवउ । निच्छउ किं पिनण्णु मंतिज्जइ । विजउ विजय-लच्छीवइ तावेहिं । उण्णमियाणणु णय-गुण-भायणु । भणई रहिउ संबंधे तारिसु। साहिय-सत्थु सवयणु पयासिउ । १४. १. D. V. णे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001718
Book TitleVaddhmanchariu
Original Sutra AuthorVibuha Sirihar
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Religion
File Size9 MB
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