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________________ वड्डमाणचरिउ [४. १२.५अकुसल-कुसल कज्ज-विहि सयलहँ अविचिंतिउ विइरयइ सुवणखलहैं। बलवंतउ हयगीउ समुट्ठिउ चक्रपाणि वइरियण-अणिट्ठिउ । सहुँ अवरहि खयरेसहुँ अक्खहु . किं करणिउ महु होइ मरक्खहु । इय भणि विरमिउ महिवेइ जाहिँ भणइ महामइ सुस्सुउ तावहिं। अम्हई तुझु पसाएँ पत्तई. बोह-विसुद्धि भाउ सयवत्त । जल जायाइव तेय-सणाहहो धरणीयले जिह वासर णाहहो। जडुवि पडुत्तु लहइ विवुहयणहँ संसग्गे आणादिय सुवणहैं। जललउ करवाल किं ण दलइ सिरु दलिय गिरिंदह । घत्ता-कयहरिसहो पुरिसहो साभरणु परमत्थें सुउ णावरु । तासु वि पुणु णिव सुणु फलु विणउ तह उवसमु पणयामरु ।। ८२ ।। 10 मलया उवसम विणयहिँ पयणिय पणयहिं। भूसिउ पुरिसो विगयामरिसो। सईं भत्तिई साहुँहिँ पणविजइ करभालयले ठवेवि थुणिजइ । साहु समागमु मणुयहँ पयणई कय अणुराउ महामइ पभणई। अण्णुणयालउ जणु पडिवज्जइ किंकरत्त महिवइह न लज्जई। इय जाणेवि णयभूसिउ सुच्चइ उवसमु सहुँ विणएण ण मुच्चइ । वेयवंत हरिण, वर्ण वणयर लहु णासहि सयमेव गुणायर । कासु ण गुणु भणु कज्ज-पसाहणु करइ महीयले पुरिस-पसाहणु । कढिणहो कोमलु कहिउ सुहावहु णयवंतहि णिय-मणि परिभावहु । दिणयरेण महिहरु ताविज्जइ कुमुयायर सुहिणाणी विजइ । पियवयणहो वसियरणु ण भल्लउ अत्थि अवरु माणुसहँ रसल्लउ । जुत्तउ महुरु लवंतउ दुल्लहु परपुट्ठो वि हवइ जणवल्लहु । घत्ता-सयलत्थहँ सत्थहँ साहणउँ हिययंगमु निरविक्खउ । रिउ वारण कारणु जयसिरिह सामहु अण्णु ण णोक्खउ ।।८३।। 10 .. २. D. J. V. ही । ३. D. J. V. संसग्गि । १३. १. J. V. रिव । २. V. वारण्णु । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001718
Book TitleVaddhmanchariu
Original Sutra AuthorVibuha Sirihar
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Religion
File Size9 MB
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