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४. १२. ४ ]
हिन्दी अनुवाद
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गरजता हुआ वह हयकन्धर - अश्वग्रीव उठा ( उस समय ) वह ऐसा प्रतीत होता था, मानो ग्रीष्मावसान समयका नवीन कंधौरवाला साँड़ ही हो। जिस प्रकार प्रलयकालीन वायुसे समुद्र विशाल एवं अविरल कल्लोलोंसे भर उठता है, उसी प्रकार शंखोंके बजते ही असंख्यात खेचरोंसे गगनरूपी आँगन भर उठा ।
घत्ता-समरांगण के लिए उत्कण्ठित वह अश्वग्रीव मार्ग में शत्रुजनोंपर आक्रमण कर उन्हें पराजित करता हुआ तथा घास, लकड़ी, जल आदि लेकर आगे बढ़ता हुआ, एक पर्वतपर स्थित नवीन सुन्दर नगर में रुका ||८०||
११
राजा प्रजापति अपने गुप्तचर द्वारा हयग्रीवकी युद्धकी तैयारीका वृत्तान्त जानकर अपने सामन्त वर्गसे गूढ़ मन्त्रणा करता है
मलया
इस प्रकार अत्यन्त अविनीत हयग्रीवका चरित बड़ा ही निरंकुश एवं सर्वथा असमंजस - पूर्ण था ।
अबाधगतिसे सभामें आये हुए चरने मदोन्मत्त गजगतिवाले खेट - स्वामी प्रजापति से कहा"अरे, समस्त दोषोंका घर, रणोंमें धुरन्धर अपने कुलरूपी आकाशके लिए भास्कर के समान, वह तुरंगकन्धर - अश्वग्रीव खेचरों सहित चढ़ा आ रहा है और रणक्षेत्रमें भीरुजनोंके लिए भयंकर वह महीधर (पर्वत) पर स्थित है । अतः अब इस समय क्या उचित है ? ( मेरी दृष्टि से तो ) शत्रुसे अवश्य ही जूझना चाहिए ।"
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चरका कथन सुनकर राजा प्रजापति कम्पित नहीं हुआ, बल्कि तुरन्त ही विचार कर वह अपने मनका तामस-भाव छोड़कर अनेक वन्दीजनों द्वारा संस्तुत त्रिपृष्ठ, सीरि— बलदेव तथा अन्य खेचरों और समुद्रके समान गम्भीर एवं धीर सामन्तवर्गं सहित, अपने प्रतापसे सूर्यको भी तिरस्कृत १० कर देनेवाला वह पोदनेश - प्रजापति गूढ़ मन्दिर ( मन्त्रणा - कक्ष ) में प्रवेश करते ही बोला -
घत्ता - “हमारी चपलाक्षी जो (यह ) लक्ष्मी है, वह सब आप लोगोंके संसगंसे ही ( जुटी हुई ) है, क्या बिना उत्तम ऋतुके धवा आदि श्रेष्ठ वृक्ष चिरकाल तक पुष्पश्री धारण कर सकते ? ॥८१॥
१२
राजा प्रजापतिकी अपने सामन्त वर्ग से युद्ध-विषयक गूढ़ मन्त्रणा
मलया
"अब आपलोगों की मति हमसे रति करती हुई हमारी ओर माताकी तरह देखेगी तथा वधूके समान हमारी रक्षा करेगी।
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१५
( क्योंकि ) गुणहीन व्यक्ति निश्चय ही गुणीजनोंके संसर्गसे न्यायमार्ग में गुणी बन जाता है । पाटल - पुष्पों में व्याप्त जल सुवासित होकर खपरेको भी सुगन्धि-गुणके आश्रित कर देता है । गुणीजनों के संसर्गसे अकुशल व्यक्ति भी कुशल बन जाता है और सज्जनोंके विधि कार्यों (के ५
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