SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 193
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 5 10 5 10 "अरिवरे तुल्लें सावि कवी दोहिमि दइव परक्कम व तह पुज्जणिज्ज बलवंत णिरुत्तउ विमवंतेण णराएँ करिवइ गज्जिय अंतर मईजिहँ ति आयरण पुरिसहो भासहिं जेण मयारि कोडि बलवंतर लीला कोडिसिला संचालिय जासु दिण्ण सयमेय समाइवि बलवंतु विवि-बल-संगरे हउँ रहंग- लच्छी-संजुत्तउ agमाणचरिउ ९ मलयविलसिया इ मुणि माणं तुज्झु सुवे इ परिणाम - सत्थु जाणे विणु मह मयवंतु अकजेण जंपइ भुवण-पया सण-दिणयर-किरणहिं तो वयहिं सो तिमिरणि हियमइ if any or परिभा आहासइ विरुद्ध हयकंधरु जिह अवहेरि रोउ पवड्डइ हि सत्तु विण होइ गुणयारउ Jain Education International वीररसोल्लें | भंति हरिव्वी । परियाणिय-सत्यहँ जयवंत | भो चक्कर बुहेहिं उत्तउ । दंडणी सहसत्ति सराएँ । गास-किरण दियरु उग्गमु जिहुँ । भावि भु-पत्त पयासहिं । अंगुलीहि पाहिँ विउत्तउ । आयवत्तु जिह तिह पञ्चलिय । जलणजडीसें सहूँ घरु जानवि । कि पर्दै जि प हूँ" भड-कय-संगरे । मकर गवु अजुत्तउ । घत्ता - मूढमणहँ कुजणहँ किं कहिवि वप्प अणिज्जिय-करण । हय- दुक्खहो सोक्खहो सिरि हवइ परिणाम हूँ मए धरणहँ ॥ ७९ ॥ [ ४. ९.१ १० मलया मकरि अमाणं । पडिणिउ एसो । मंति परिट्टि मणु करेविणु । यही र सर्ण कंपइ । कायारिव तिमिरुक्कर - हणणहिँ । परिबुद्ध ण तुरयगल दुम्मइ । लोयण - जुलु स-भाले चडाविवि । पाणि-तलप्पइँ पहय-वसुंधरु | कालु हेविणु पाइँ कड्डुइ । इपेविणु वइरि-वियारउ । ९. १. D. अरे ं । २. D. J. V. मउ । ३. D. J. V. भुवहुत्त । ४. DJ V. ब्वा। ५. J. V. जिप्पय V. जिप्प | For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001718
Book TitleVaddhmanchariu
Original Sutra AuthorVibuha Sirihar
AuthorRajaram Jain
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1975
Total Pages462
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, Literature, & Religion
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy